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किसने कहा मन चंचल है प्राणशक्ति को जागृत करने का प्रयत्न कर रहे हैं । जैसे-जैसे हम श्वास को दीर्घ करते हैं, हम पूरी ऊर्जा को खींचते हैं और उसे देखते हैं तो शक्ति के मूल स्रोत को जागृत कर लेते हैं, जिसके विस्फोट के द्वारा हमें नई-नई उपलब्धियां प्राप्त होती हैं। नई दिशाओं के उद्घाटन के लिए श्वास-प्रेक्षा बहुत ही महत्त्व पूर्ण है। इसे सामान्य न मानें।
जैसे दीर्घश्वास-प्रेक्षा शक्ति जागरण का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, वैसे ही समवृत्ति श्वास-प्रेक्षा भी शक्ति-जागरण का महत्त्वपूर्ण सूत्र है । एक नथुने से श्वास लेना और दूसरे से निकालना-यह है समवृत्ति श्वास । इसे देखना, इसके साथ मन का योग करना महत्त्वपूर्ण बात है। मनोकायिक चिकित्सक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि समवृत्ति श्वास के माध्यम से चेतना के विशिष्ट केन्द्रों को जागृत किया जा सकता है । उन्होंने यहां तक प्रतिपादित किया है कि इसके पुष्ट अभ्यास से अतीन्द्रियज्ञान उपलब्ध किया जा सकता है । क्लेवोयेन्स की उपलब्धि इससे संभव हो सकती है। समवृत्ति श्वास का सतत अभ्यास अनेक उपलब्धियों में सहायक हो सकता है।
__श्वास के अनेक प्रयोग हैं-दीर्घश्वास-प्रेक्षा, समवृत्तिश्वास-प्रेक्षा, सूक्ष्म-श्वास-प्रेक्षा आदि । और भी अनेक प्रयोग हैं । मूल बात हमें ज्ञात हो जानी चाहिए कि श्वास बहुत ही मूल्यवान् है । इसे छोटा न समझा जाए । यदि यह छोटी-सी बात भी समझ में आ जाती है तो साधना की बड़ी-बड़ी बातें स्वतः समझ में आ जाएंगी । मनुष्य की कठिनाई यह है कि वह सदा ध्वजा को देखता है, नींव को नहीं देखता । अध्यात्म की साधना में श्वास को देखना नींव को देखना है । यह नींव का पत्थर है । इसी पर साधना का महल खड़ा किया जा सकता है।
यदि हम श्वास की बात को ठीक से पकड़ लेते हैं तो अगले द्वार अपने-आप उद्घाटित होते चले जाते हैं।
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