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किसने कहा मन चंचल है
शरीर में अभिव्यक्त होती हैं। उनका मूल कारण शरीर नहीं है। उनका मूल कारण है मन । इस खोज के पश्चात् यह समस्या और अधिक गंभीर हो गयी कि हर बीमारी के मूल में मानसिक विकृति की खोज होनी चाहिए।
___ इस स्थिति में एक ज्वलंत प्रश्न है कि इतने मानसिक रोग हैं तो उनका उपचार कैसे किया जाए ? बहुत बड़ा प्रश्न है। मनोचिकित्सक मानसिक रोगों का उपचार कर रहे हैं। उनके सामने अनेक पद्धतियां हैं। बिजली के झटके देकर तनाव की चिकित्सा करते हैं। लगातार निद्रा दिलाते हैं। ऐसी दवा इंजेक्ट करते हैं जिससे रोगी चौबीस घंटे तक निद्रा में रहे। अर्द्ध निद्रा भी दिलाते हैं। कुछ ऐसी दवाइयां देते हैं जिनसे रोगी आधी नींद में रहता है। मस्तिष्क में करेंट का निरंतर प्रयोग किया जाता है। तनावविसर्जन में ये उपाय उपयोगी माने जाते हैं। इस प्रकार चिकित्सा की अनेक पद्धतियां हैं। उन सारी पद्धतियों से दो बातें स्पष्ट होती हैं कि रोग-निवारण के लिए औषधि का प्रयोग होता है या विद्युत् का प्रयोग होता है। सबका प्रयोजन है मस्तिष्क को आराम देना, विचारों और विकल्पों की उधेड़बुन को समाप्त करना । जो विचार निरंतर उभर रहे हैं। उनका शमन करना, नींद लाना, बेहोशी लाना—ये सब स्मृति को खोने के लिए किए जाते हैं। क्या इनके दुष्परिणाम नहीं होते ? आज का चिकित्सक यह स्पष्ट रूप से स्वीकार करता है कि आज जो औषधिया दी जाती हैं, वे प्रतिक्रिया पैदा करती हैं, शरीर में क्षति पैदा करती है । और भी अनेक मानसिक समस्याएं पैदा होती हैं, ये चिकित्सा-पद्धतियां पूर्ण निर्दोष नहीं हैं। चिकित्सा हो पर प्रतिक्रिया पैदा न हो, ऐसा इन चिकित्सा-पद्धतियों में नहीं है ।
इस मानसिक तनाव की स्थिति में हम प्रेक्षा-ध्यान प्रणाली पर विचार करें । जो कार्य औषधियां और विद्युत् से संपन्न होता है क्या वह कार्य-प्रेक्षाध्यान से संभव है ? इस प्रश्न का उत्तर 'हां' में दिया जा सकता है। प्रेक्षाध्यान के अन्तर्गत हम जो छोटे-छोटे प्रयोग करते हैं, वे इस संदर्भ में बहुत ही महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं । जो काम औषधियां नहीं कर पातीं वह काम ध्यान के ये छोटे-छोटे अभ्यास कर देते हैं । प्रश्न है मस्तिष्क को विश्राम देना । प्रश्न है विचारों की उधेड़बुन को समाप्त करना । कायोत्सर्ग से जितना विश्राम मस्तिष्क को मिलता है, स्नायु-संस्थान को जितना आराम मिलता है उतना विश्राम किसी दूसरी प्रणाली से नहीं मिलता। न औषधियां और न विद्युत् हो उतना आराम दे पाते हैं। इनकी अपेक्षा ही नहीं होती. विचारों की
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