Book Title: Kisne Kaha Man Chanchal Hain
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 319
________________ किसने कहा मन चंचल है सिद्धि का तीसरा स्तर है-मूछो की समाप्ति, कषाय की समाप्ति । 'जिस व्यक्ति की मूछी कम हो जाती है, कषाय नष्ट हो जाते हैं, वह इस सिद्धि को प्राप्त कर लेता है। जब यह सिद्धि प्राप्त हो जाती है तब चेतना की निर्मलता अपने-आप बढ़ जाती है । हमारी साधना के दो मुख्य उद्देश्य हैं-कषाय की शान्ति और चेतना की निर्मलता । ये दो महान् सिद्धियां हैं । चमत्कार की सिद्धि भी एक 'प्रकार की सिद्धि है। उसे मैं सर्वथा निकम्मी नहीं समझता। किन्तु वह हमारा ध्येय नहीं है। जिसे कषाय-शमन की सिद्धि उपलब्ध है; जिसे चेतना के जागरण की सिद्धि उपलब्ध है, उस व्यक्ति को अणिमा, लघिमा, महिमा आदि ऋद्धियां प्राप्त होंगी तो उनका उपयोग भी उसी दिशा में होगा; चम'कार की दिशा में नहीं होगा। हम प्रेक्षा-ध्यान के द्वारा जो पाना चाहते हैं, जो सिद्ध करना चाहते हैं, जो साधना चाहते हैं, उसे साधे। इतना सब कुछ होता है तो फिर नए वातायन में बैठकर प्रेक्षा-ध्यान को समझने का मौका मिलता है, देखने का मौका मिलता है। ध्यान का अर्थ क्या है, मूल्य क्या है-इसे समझा जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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