Book Title: Kisne Kaha Man Chanchal Hain
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 327
________________ किसने कहा मन चंचल है विचार दो कारणों से उठते है। कुछ विचार आन्तरिक प्रवृत्तियों के कारण उठते हैं और कुछ विचार आकाश में फैले हुए शब्द वर्गणा के कारण उठते हैं । जब शब्द वर्गणा के पुद्गल हमारे मस्तिष्क में प्रविष्ट होते हैं तब विचार उठते हैं। एक सज्जन व्यक्ति उत्तम विचारों वाला व्यक्ति बैठा है।' उसके चारों ओर पचासों व्यक्ति हैं। कुछ व्यक्ति अच्छे विचार वाले हैं और कुछ व्यक्ति बुरे विचार वाले हैं। किन्तु उस सज्जन व्यक्ति के विचार मस्तिष्क से निकलकर वायुमंडल में विकीर्ण होते हैं और उपस्थित सभी व्यक्तियों को प्रभावित कर डालते हैं। सबके विचार बदल जाते हैं। इसी प्रकार एक बुरे व्यक्ति के विचार-पुद्गल आकाश में फैलकर अच्छे विचारों वाले व्यक्तियों के विचारों को भी बुरा बना डालते हैं। यह सब होता है विचारों की शक्ति के आधार पर । व्यक्ति के मस्तिष्क से निकलने वाले पुद्गल आकाश में फैलते हैं और दूसरे व्यक्तियों से टकराकर उनको प्रभावित करते हैं । सत्संग का इसीलिए तो महत्त्व है कि संत व्यक्तियों के पास बैठने से विचारों की विशुद्धि होती है। आचारांग का एक सूत्र है-'अलं बालस्य संगणं'-बुरे विचार वालों का संग मत करो। उनसे सदा दूर रहो। ऐसा न हो जाए कि बुरे व्यक्तियों के विचार तुम्हें प्रभावित कर तुम्हें भी बुरा बना डालें । इससे बचने के लिए हमें दो ओर से प्रक्रिया करनी होती है। पहली यह कि हमारी अन्तर्वत्तियां बुरी न जागें । अन्तर्वृत्तियों के शोधन के लिए तेजस और पद्म लेश्या का ध्यान किया जाए। दूसरी बात है कि बुरे विचार न उठे, बुरे विचार हमें आक्रान्त न करें, हमारे मस्तिष्क को प्रभावित न करें, इसलिए हमें शुक्ल लेश्या का ध्यान करना होगा । हम एक ऐसे कवच का निर्माण करें जिसको भेदकर बुरे विचार न आ पाएं । वे बाहर ही रह जाएं। हमारे मस्तिष्क में न आयें । यदि शुक्ल लेश्या के द्वारा हम एक शक्तिशाली कवच बना लेते हैं तो बाहर के खतरे से बचे जाते हैं। यदि हम तैजस और पद्म लेश्या का कवच बना लेते हैं तो भीतर से उठने वाले बुरे विचारों के आक्रमण से बच जाते हैं । इसके बाद अच्छे विचारों की तरंगें पैदा होने लग जाती हैं और ये तरंगें बहुत सहयोगी बनती हैं। ये हमारी अध्यात्म यात्रा में आगे बढ़ने में सहयोग करती हैं और निरंतर हमारा साथ देती हैं। कहीं बाधा नहीं डालतीं। लेश्या ध्यान का बहुत बड़ा महत्त्व है। निस्तरंग तक पहुंचने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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