Book Title: Kisne Kaha Man Chanchal Hain
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 337
________________ किसने कहा मन चंचल है अपने आपको देखने का तीसरा सूत्र है— भावना । इससे प्राण ऊर्जा और संकरुपशक्ति ( विल पावर) का विकास होता है । प्राण ऊर्जा का विकास होने पर संकल्पशक्ति का और संकल्पशक्ति का विकास होने पर हमें हर पदार्थ सम्मोहित नहीं कर सकता । हमारा निश्चय अटल हो जाता है । सफलता का महत्त्वपूर्ण सूत्र है - दृढ़ निश्चय । अपने-आपको देखने का चौथा सूत्र है - अनुप्रेक्षा । सामाजिक संपर्क, पदार्थ के संयोग-वियोग से पनपने वाली मूर्च्छा को तोड़ने और मन पर जमने वाले मलों की सफाई के लिए यह बहुत मूल्यवान् अभ्यास है । यह चिन्तनात्मक ध्यान है । यह चिन्तन से प्रारम्भ होता है और एक विषय में चिंतन की धारा को प्रवाहित कर अनुभव के स्तर तक पहुंच जाता है । इससे सचाई की अनुभूति होती है, मन की निर्मलता और सहिष्णुता की शक्ति बढ़ती है । अपने-आपको देखने का पांचवां सूत्र है- प्रेक्षा । प्रेक्षा से शरीर की सक्रियता बढ़ती है, चैतन्य केन्द्र जागृत होते हैं । श्वास, शरीर और शरीर के चैतन्य केन्द्रों से निकट संपर्क स्थापित होते हैं । उनके आन्तरिक स्वरूप को जानने-समझने का अवसर मिलता है । दीर्घश्वास प्रेक्षा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त उपयोगी है । इससे तेजस शरीर जागृत होता है । मन की चंचलता को मिटाने का यह सहज-सरल उपाय है। शरीर प्रेक्षा से शरीर के विष विसर्जित होते हैं। मन की सूक्ष्म को पकड़ने की क्षमता विकसित होती है । शरीर प्रेक्षा का अर्थ है -- शरीर के प्रतिक्षण बदलते हुए पर्यायों को देखना, अनुभव करना । यह पर्याय के माध्यम से मूल द्रव्य को देखने की यात्रा है । ३२४ शरीर के रासायनिक परिवर्तनों को देखना, अनित्यता का अनुभव करना । हम नित्य को नहीं देख सकते, इसलिए नित्य दर्शन की यात्रा अनित्य-दर्शन से शुरू करते हैं । शरीर में घटित होने वाली कुछ हो, उन्हें द्रष्टाभाव से देखना, करना । घटनाओं को देखना, वेदना - पीड़ा जो शरीर और चैतन्य के भेद का अनुभव चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा से चैतन्य केन्द्रों पर हमारा नियंत्रण स्थापित होता है | हम उनकी शक्ति का सही नियोजन कर सकते हैं । उनमें रासायनिक परिवर्तन कर सकते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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