Book Title: Kisne Kaha Man Chanchal Hain
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 335
________________ ३२२ किसने कहा मन चंचल है “पदार्थ से सुख होता है, यह निश्चित व्याप्ति नहीं है । पदार्थ के होने पर सुख हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता। मन की संतुलित अवस्था में सुख की निश्चित व्याप्ति है । जब मन शान्त होता है तब सुखानुभूति निश्चित होती है । इसकी पुष्टि अल्फा तरंग के वैज्ञानिक सिद्धान्त से हो रही है। 'शान्त मन की अवस्था में मस्तिष्क में अल्फा तरंग पैदा होती है। उससे व्यक्ति सुख का अनुभव करता है। मानसशास्त्री 'जिल्डर पेनफील्ड' के अनु"सार मन में क्षोभ और उद्वेग जितना कम होता है उतना ही मन स्वस्थ रहता है । पदार्थाभिमुखता मन में क्षोभ और उद्वेग पैदा करती है। पदार्थ के प्रति होने वाली अति उत्सुकता ग्रन्थियों के स्राव को अनियमित बना देती है । फलतः दुःख की परंपरा अन्तहीन हो जाती है। इसीलिए अध्यात्म पृष्ठभूमि पर व्यवहार को चलाने वाला पदार्थ का उपभोग करता है, पदार्थ की दिशा में मुंह कर नहीं चलता। उसकी जीवन-यात्रा सत्य की दिशा में चलती है । जिसे सत्य उपलब्ध हो जाता है, वह दुःख से मुक्त हो जाता है । हमारे सभी दुःखों का मूल है-असत्य । हम असत्य को पालते हैं, भ्रान्तियों को जन्म देते हैं और दुःख को निमन्त्रित करते हैं। दुःख-मुक्ति का पहला चरण होगा-चिरपोषित भ्रान्तियों को तोड़ना, भ्रान्तियों को जन्म देने वाले असत्य से दूर होना और सत्य का सक्षात्कार करना। व्यवहार आखिर व्यवहार है । जीवन यात्रा के लिए उसकी उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता। इस सचाई को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि व्यवहार की पृष्ठभूमि में पदार्थ की प्रेरणा होती है तब मनुष्य दुःखी बनता है और जब उसकी पृष्ठभूमि में पदार्थ की प्रेरणा होती है तब मनुष्य दुःखी बनता है और जब उसकी पृष्ठभूमि में अध्यात्म की प्रेरणा होती है तब मनुष्य शान्त और सुखी जीवन जीता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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