Book Title: Kisne Kaha Man Chanchal Hain
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 339
________________ ३२६ किसने कहा मन चंचल है में लग जाती है । इस अवस्था में भावना, विचार और दर्शन-ये सब चैतन्य की परिक्रमा करने लग जाते हैं, मन राग-द्वेष से मुक्त हो तटस्थ और प्रतिक्रिया शून्य होने लग जाता है। यही है सारी समस्याओं और दुःखों से छुटकारा पाने का मार्ग। सुख-दुःख के प्रति हमारा दृष्टिकोण मिथ्या होता है, हमारा मन इन्द्रिय विषयों के प्रति आकर्षित होता है-यह हमारी सुषुप्ति-स्तरीय चेतना है। हमारा मन पदार्थ तथा हाथ की अंगुलियों, आंखों और वाणी के साथ बाहर आने वाली विद्युत् से सम्मोहित होता है-यह हमारी भावना-स्तरीय चेतना है। हमारा मन पदार्थ और व्यक्ति के साथ चितन पूर्वक संबंध स्थापित करता है। हेय को छोड़ने और उपादेय को स्वीकार करने की बात हम जानते हैं, पर भावना से प्राप्त सम्मोहन से मुक्त हुए बिना क्या यह संभव हो सकता है ? भले न हो, फिर भी हम स्वतन्त्र चिन्तन का उपक्रम करते हैं---यह हमारी विचार-स्तरीय चेतना है । हम पदार्थ के बाहरी स्वरूप को देखकर ही संतुष्ट नहीं होते, उसके आंतरिक या सूक्ष्म स्वरूप तक जाने का प्रयत्न करते हैं-यह हमारी दर्शनस्तरीय चेतना है। प्रेक्षा के द्वारा हम सुषुप्ति को जागरूकता में बदलकर दर्शन शक्ति को अन्तदर्शन की भूमिका पर ले जाते हैं । प्रेक्षाध्यान के फलित१. सक्रियता और निष्क्रियता का संतुलन, शारीरिक संतुलन । २. लक्ष्य के प्रति मन की जागरूकता, कर्म और चिन्तन का सामजस्य । ३. संकल्प-शक्ति का विकास, दृढ़ निश्चय की क्षमता का विकास । ४. सत्य की अनुभूति या साक्षात्कार, मन के मलों की सफाई । ५. द्रष्टाभाव का विकास । ६. घटना के प्रति सम या तटस्थ रहने की क्षमता या प्रतिक्रियामुक्त चेतना का विकास। ७. मानसिक संतुलन । ८. आचार में समता और व्यवहार में मृदुता का विकास । ६. वैयक्तिक और सामाजिक जीवन के अन्तविरोधों का समन्वय । १०. अतिमानसिक चेतना का जागरण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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