Book Title: Kisne Kaha Man Chanchal Hain
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 325
________________ किसने कहा मन चंचल है मात्रा ध्यान के बीस मिनट में हो जाती है। यह एसिड शरीर के लिए हानिकारक होता है । ध्यान में और भी अनेक परिवर्तन होते हैं । किन्तु वह तरंगातीत स्थिति है, ऐसा नहीं मानना चाहिए। तरंगातीत अवस्था एक वीतराग की भी नहीं होती, केवली की भी नहीं होती। गौतम ने भगवान् से पूछा- 'भते ! केवली ने जहां हाथ रखा क्या वह वहां पुनः हाथ रख सकता है ?' महावीर ने कहा-'नहीं रख सकता।' असीम ज्ञानी भी जब वैसा करने में असमर्थ है तो भला साधारण आदमी यह दावा कैसे कर सकता है कि वह वही कर रहा है जो उसने पहले किया था । गौतम ने फिर पूछा---'यह कैसे, केवली दूसरी बार उसी आकाश प्रदेश पर हाथ नहीं रख सकता ?' महावीर ने उत्तर दिया-गोतम ! शरीर चंचल है । केवली हो जाने पर भी शरीर की चंचलता नहीं मिटी है। इस शारीरिक चंचलता के कारण वह केवली दूसरी बार उसी आकाश प्रदेश पर हाथ नहीं रख सकता। कुछ-न-कुछ अन्तर आ जायेगा । आकाश-प्रदेश बदल जाएंगे। इस प्रकार केवली भी तरंगातीत स्थिति में नहीं है। हम यह कभी कल्पना न करें कि दो-चार घंटे की ध्यान की स्थिति से तरंगातीत अवस्था प्राप्त हो जाती है। जब व्यक्ति शैलेशी अवस्था को प्राप्त होता है, चौदहवें गुणस्थान में पहुंच जाता है, अयोगी बन जाता है, तब उसे तरंगातीत अवस्था प्राप्त हो जाती है । यह मोक्ष की निकटस्थ अवस्था है। आत्मा वैभाविक पर्यायों से सर्वथा मुक्त होकर अप्रकम्प हो जाता है। अप्रकम्प दशा की यात्रा हमारा लक्ष्य है । यह लंबी यात्रा है। इस दशा तक हमें पहुंचना है। ध्यान उसका माध्यम है । हम तरंगों में जी रहे हैं। ध्यान काल में भी तरंगें आती हैं, विकल्प उठते हैं । इससे निराश या खिन्न नहीं होना है। यदि दो-चार क्षणों तक भी तरंग न आए, विकल्प न उठे तो यह तरंगातीत अवस्था की क्षणिक प्राप्ति है । यह भी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। हम तरंगों के घेरे में बैठे हैं, तरंगों में जी रहे हैं, तरंगों में श्वास ले रहे हैं। इस तरंगित जगत् में यदि २-४ मिनट भी निस्तरंग का अनुभव करते हैं तो यह दूसरी दिशा की ओर प्रस्थान है। इस जगत् में जीने वाले गुरुत्वाकर्षण के घेरे में बंधे होते हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी अभ्यास के द्वारा गुरुत्वाकर्षण से हटकर हल्केपन का अनुभव करता है तो मानना चाहिए कि वह एक नयी यात्रा पर चल रहा है। तीन स्थितियां हैं-१. बुरे विचार २. अच्छे विचार और ३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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