Book Title: Kisne Kaha Man Chanchal Hain
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 318
________________ चेतना का प्रस्थान : अज्ञात की दिशा ३०५ जा सकता है। आज कुछ विपर्यास हो गया है। आज ध्यान की उपलब्धि यह मान ली गई है कि ध्यान करने वाला अधर में रहे, धरती से ऊपर उठने वाला हो । यदि यह सिद्धि नहीं होती है तो ध्यान को निकम्मा समझ लिया जाता है। यदि ध्यान की सिद्धि का यही मानदंड रहा तो सिद्धि के कुछ चमत्कार तो प्रदर्शित हो सकते हैं, किन्तु अन्तर का कोई चमत्कार घटित नहीं हो सकता । कुछ भी उपलब्धि नहीं होती। नट नाना प्रकार के वेश बनाते हैं और दूसरों को सुखद अनुभव कराते हैं, किन्तु अपने आप में रिक्त ही रहते हैं । चमत्कार को सिद्धि मानने वाले ध्यान-साधकों की भी यही स्थिति बन जाती है। वे रिक्त के रिक्त ही रह जाते हैं । सिद्धियों के तीन स्तर हैं। एक है-प्राकृतिक, जैसे परिस्थितियों पर प्रभुत्व पाना । दूसरी सिद्धि है-ध्यान और दर्शन की विशिष्ट उपलब्धि। तीसरी सिद्धि है-स्वभाव का परिवर्तन, कषायों का परिवर्तन । शरीर को हल्का बनाना, शरीर को भारी बनाना, जल पर चलना, आकाश में अधर उठना-ये सारी सिद्धियां प्राकृतिक नियमों को जानने पर और स्थितियों को बदलने पर घटित होती हैं किन्तु इनके द्वारा आत्मा में कोई परिवर्तन नहीं होता, चेतना नहीं बदलती। इन सिद्धियों से चेतना का अध्यात्म की दिशा में प्रस्थान होता है या स्वभाव में परिवर्तन आता है, यह मानना भूल है । ऐसे चमत्कार प्रदर्शित करने वाले अनुग्रह या निग्रह करने में समर्थ होते हैं । वे इतने संवेदनशील बन जाते हैं कि थोड़े से अपराध पर वे शाप दे देते हैं और थोड़े से प्रसन्न होने पर वरदान दे देते हैं । सिद्धि का यह एक स्तर है। जिन्हें चमत्कार दशित करना है, जिन्हें प्रशंसा पानी है, उनके लिए यह स्तर ठीक है किन्तु जिन लोगों को मूलतः अपने को बदलना है, आत्मा को उपलब्ध होना है; उनकी दिशा दूसरी होगी। उनकी सिद्धियां भी दूसरे प्रकार की होंगी। सिद्धियों का दूसरा स्तर है-चेतना का जागरण, मति-श्रुत ज्ञान से लेकर कैवल्य तक का जागरण । मति-श्रुत की पटुता का विकास, अतीन्द्रिय का विकास, कैवल्य चेतना का विकास-यह भी सिद्धि का एक स्तर है। पूछा जा सकता है कि पांच वर्ष के ध्यान के अभ्यास से चेतना की निर्मलता कितनी बढ़ी ? ज्ञान कितना विकसित हुआ? अनुभव में कितनी वृद्धि हुई ? यह चेतना के जागरण का स्तर है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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