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प्रवचन २६ ।
संकलिका
• साधारण व्यक्ति के लिए यह जगत् रङ्ग, ध्वनि और तापमय है। • वैज्ञानिक के लिए यह जगत् दिग्, काल और विद्युत्मय है । • आध्यात्मिक के लिए यह जगत् चेतन और अचेतन में उठने वाली
तरंगों से भरा हुआ है। • मनुष्य विद्युत्-आवेगों से आविष्ट होकर प्रवृत्तियां कर रहा है । • हमारे विद्युत्-आवेग नियंत्रित हो जाएं। तरंगों की लम्बाई बढ़ जाए
यही है अध्यात्म साधना का साध्य । इसे समझने वाला ही अध्यात्म के रहस्य को समझ सकता है।
लेश्या ध्यान-निस्तरंग तक पहुंचने का माध्यम । • तरंगातीत आत्मा की अभिव्यक्ति के दो मुख्य स्थान
० मस्तिष्क।
• चैतन्य केन्द्र। • तरंगातीत अवस्था को प्राप्त करने के पांच साधन ।
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