Book Title: Kisne Kaha Man Chanchal Hain
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 316
________________ चेतना का प्रस्थान : अज्ञात की दिशा ३०३ सकता है ? किन्तु हमने यह रूढ़ धारणा बना ली कि आदमी पर मृदुता से शासन नहीं किया जा सकता। इस धारणा से मानवीय सम्बन्धों में कटुता आयी है। एक आदमी दूसरे आदमी को शत्रु या पराया मानता चला आ रहा है। प्रेक्षा-ध्यान की साधना के द्वारा आदमी के स्वभाव में परिवर्तन आता है, साथ-साथ मानवीय सम्बन्धों में भी परिवर्तन घटित होता है । यदि मानवीय सम्बन्धों में कोई परिवर्तन घटित न हो और आदमी पहले जैसा ही कठोर, निर्दय और क्रूर बना रहे तो समझ लेना चाहिए कि ध्यान जीवन में उतरा नहीं है, जीवन में उसका प्रवेश ही नहीं हो पाया है। ध्यान की साधना के द्वारा स्वभाव का परिवर्तन और मानवीय संबंधों का परिवर्तन तब घटित हो सकता है जब प्रतिदिन हमारे मन पर जमने वाले मलों का शोधन होता रहे। प्रतिदिन मलं जमता रहता है। पसीना आता है, शरीर पर मैल जम जाता है। धूल उड़ती है, शरीर और कपड़े मैले हो जाते हैं। आदमी इनके मैल को पानी से धो डालता है। किन्तु वह इस ओर ध्यान ही नहीं देता कि मन पर प्रतिपल कितना मैल जमता जाता है। उस मैल को हटाने को वह नहीं सोचता। कितने आश्चर्य की बात है ? जब तक इस मैल को नहीं धोया जाता तब तक स्वभाव का परिवर्तन या मानवीय सम्बन्धों में परिवर्तन करने की कल्पना केवल कल्पना मात्र ही रह जाती है। कुछ भी यथार्थ घटित नहीं हो सकता। यह चिंतन केवल दुश्चितन और तर्कणा केवल तर्कणा रह जाती है। कोई परिणाम नहीं आ सकता। सबके मूल में है शोधन । प्रेक्षा-ध्यान के साथ-साथ हम प्रतिदिन प्रतिक्रमण करें। प्रतिक्रमण अर्थात् जो दिन में या रात में मैल जमा हो उसे धोकर साफ कर डालें। ऐसा प्रयत्न करें कि मैल जमे ही नहीं। अनुक्षा से यह काम सरल हो जाता है। धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ता है और मन निर्मल होता जाता है। मन पर मैल जमता है पदार्थों के द्वारा । पदार्थ अनित्य हैं, अशाश्वत हैं। आदमी उनको नित्य और शाश्वत मान लेता है। इससे मूर्छा पलती है। इतना लगाव हो जाता है पदार्थ से कि एक सूई भी खो जाए तो मन खो जाए । पदार्थ के वियोग से मन बेचैन हो जाता है । कांच का एक प्याला भी टूट जाए तो मन बेचैन हो जाता है। नींद हराम हो जाती है। अनित्य को हमने इतना नित्य मान लिया कि मानो वह कभी भी बिछुड़ने वाला नहीं है। पदार्थों के प्रति जो नित्यता की बुद्धि है, उससे मैल जमता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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