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किसने कहा मन चंचल है
ज्वाला उभर आती है । यह इसलिए उभरती है कि वह यह नहीं जानता कि वह इस दायित्व के लिए अक्षम है । जो व्यक्ति अपने-आप को नहीं जानता वह अपने मन में सदा जलने वाली आग सुलगा देता है और उसमें सदा जलता रहता है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्वयं की योग्यता और अयोग्यता का निरीक्षण बहुत आवश्यक है ।
मानसिक स्वास्थ्य की साधना का दूसरा सूत्र है-परिणामों की स्वीकृति । हम प्रवृत्ति करते हैं, किन्तु उसके परिणामों को स्वीकार नहीं करते और इसीलिए मन में असंतोष और अशांति पैदा होती है । कृत के परिणामों से जहां अपने-आप को बचाने की मनोवृत्ति होती है, वहां मानसिक स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाता है । रोग का एक कीटाणु उसमें घुस जाता है । परिणाम को स्वीकार करने के लिए मन बहुत शक्तिशाली चाहिए । जो मन शक्तिहीन होता है वह कभी परिणामों को स्वीकार नहीं कर सकता । हमें अच्छे या बुरे सभी प्रकार के परिणामों को स्वीकारना चाहिए। इसमें कभी हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। जिस व्यक्ति में परिणामों को स्वीकार करने का साहस नहीं होता, भय होता है वह परिणामों को दूसरे के माथे पर मढ़ देता है। स्वयं बच निकलना चाहता है। यदि परिणाम अच्छा है तो उसका श्रेय स्वयं लेना चाहेगा और यदि बुरा परिणाम है तो उसका अश्रेय दूसरे पर उड़ेल देगा । यह साहसहीनता है । इससे मन मलिन होता है, बीमार होता है।
___मानसिक स्वास्थ्य की साधना का तीसरा सूत्र है-सत्य के प्रति समर्पण । सत्य की व्याख्या बहुत ही जटिल है । किसे सत्य माना जाए ? हमें इसमें उलझना नहीं है । सत्य का अर्थ है-सार्वभौम नियम (युनिवर्सल टूथ) मृत्यु एक सार्वभौम नियम है, यह एक बड़ी सचाई है । कोई भी इसे नहीं टाल सकता । इस दुनिया में तीर्थंकर भगवान, अर्हत्, मसीहा आदि-आदि अनेक शक्तिशाली व्यक्ति हुए हैं जो इस शाशवत नियम को नहीं टाल पाए हैं। कोई भी इस सार्वभौम नियम का अपवाद नहीं बन सकता। कोई अमर नहीं रह सकता । कोई भी प्राणी सदेह अमर नहीं होता । विदेह में जो अमर होता है वह हमारे सामने नहीं है । मृत्यु एक सचाई है । कर्म एक सचाई है । काल एक सचाई है । वस्तु स्वभाव एक सचाई हैं । जो भी सार्वभौम सचाइयां हैं, व्यापक सत्य हैं, उनके प्रति जो समर्पित रहता है, वह मानसिक दृष्टि से स्वस्थ रह सकता है।
एक व्यक्ति के पास एक घड़ी थी। वह गुम हो गयी । व्यक्ति रोने
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