________________
२७८
किसने कहा मन चंचल है
है। जिसने सहिष्णुता को साध लिया है उसके लिए सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास, सुविधा-असुविधा कोई अर्थवान् नहीं होते। क्योंकि ऐसे व्यक्तियों ने अपने मन का और अपने शरीर का ऐसा निर्माण कर डाला है कि वह हर स्थिति को झेलने में समर्थ और सक्षम होता है। जब हर स्थिति को झेलने का सामर्थ्य नहीं होता तब अनेक समस्याएं उठती हैं, व्यक्ति घबरा जाता है । जो व्यक्ति कठिनाइयों में पला-पुसा, फिर कुछ सुविधाएं उपलब्ध हुई आराम में जीने लगा, फिर कठिनाइयां आ गयीं तो ऐसा व्यक्ति उन कठिनाइयों को झेल सकता है । वह विचलित नहीं होता। जिस व्यक्ति ने आग को झेला है, वह हर आंच में से गुजरने में सफल हो जाता है। किन्तु जो व्यक्ति आराम में रहा है, जिसने कभी दुःख-दुविधाओं को नहीं देखा, वह व्यक्ति आकस्मिक कठिनाइयों में टूट जाता है। वह उनको सहन नहीं कर सकता । इसलिए विपदाओं को झेलने का अभ्यास करना चाहिए ।
___ लोग सकल्प करते हैं, पर अपने संकल्प पर टिक नहीं पाते । इसके तीन कारण हैं---
१. चित्त की चपलता। २. असहिष्णुता। ३. इन्द्रियों की उच्छंखलता ।
'अत्यक्तचित्त चापल्याः, अजितोग्रपरीषहाः ।
अनिरुद्धाक्षसन्तानाः, प्रस्खलन्त्यात्मनिश्चये ॥' “संकल्प करते समय कष्टों की धारणा नहीं होती, किन्तु वे आते हैं तब जिनमें तितिक्षा का अभ्यास नहीं होता उनका जीवन ही नष्ट हो जाता है।"
जीवन में सहिष्णुता का विकास अत्यन्त आवश्यक है। तितिक्षा का इतना विकास होना चाहिए कि व्यक्ति आने वाली प्रत्येक परिस्थिति को भेल सके और उसके साथ सामजस्य स्थापित कर सके । ऐसी स्थिति में विश्व की कोई शक्ति मन को विचलित नहीं कर सकती। जिस व्यक्ति ने सहिष्णुता का अभ्यास कर लिया, सहिष्णुता साध ली, उस व्यक्ति के मन को भगवान् भी असंतुष्ट नहीं कर सकता। जिसने सहिष्णुता का अभ्यास नहीं किया उस व्यक्ति के मन को भगवान भी स्वस्थ नहीं बना सकता । सब-कुछ मिल जाने पर भी वह यही कहेगा-अमुक वस्तु नहीं मिली। उसका असंतोष उभर-उभरकर बाहर आता रहेगा। सहिष्णुता का विकास होने पर असंतोष मिट जाता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org