Book Title: Kisne Kaha Man Chanchal Hain
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 297
________________ २८४ किसने कहा मन चंचल है यह सारी महिमा होती है। जो व्यक्ति अपने में अकेला होता है और अपने अकेलेपन का अनुभव करता है वह स्वयं अपनी महिमा का अनुभव करता है और दूसरे भी उसकी महिमा का अनुभव करते हैं।' यह था आचर्य भिक्षु का स्वस्थ चिन्तन । चिन्तन से व्यक्ति को परखा जा सकता है, व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य का परीक्षण किया जा सकता है। मानसिक स्वास्थ्य का चौथा पेरामीटर है-प्रतिक्रिया । विभिन्न परिस्थितियों में होने वाली विभिन्न प्रतिक्रियाओं के द्वारा समझा जा सकता है कि व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य कैसा है। कोई व्यक्ति कटु बात कहता है तो उसका उत्तर कटु बात से ही दिया जाए यह जरूरी नहीं है। किन्तु जब ये प्रतिक्रियाएं प्रगट होती हैं जब यह जान लिया जाता है कि व्यक्ति मन से कितना रुग्ण है । पिता यदि मानसिक दृष्टि से स्वस्थ है तो पुत्र के क्रोधित होने पर भी वह विचलित नहीं होगा । वह कहेगा-"बेटा ! कोई बात नहीं है। धैर्य रखो। शांत होकर इस बात को सोचो।" लोग सोचते हैं-"बेटा गुस्से में है और बाप यदि उससे दुगुना गुस्सा न करे तो वह कैसा बाप !" ऐसा सोचना मानसिक अस्वास्थ्य का लक्षण है। बेटे ने गुस्से में कहा"पिताजी ! आज से मैं आपसे अलग होता हूं। मैं आपके साथ भोजन नहीं करूंगा।" स्वस्थ मन वाले पिता ने कहा-"कोई बात नहीं। तुम मेरे साथ भोजन मत करना। मैं तुम्हारे साथ भोजन कर लिया करूंगा। इतने दिन तुम मेरे साथ थे, आज से मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।" यह सुनते ही बेटे का क्रोध उतर जाता है और संघर्ष टल जाता है। मानसिक स्वास्थ्य को मापने का पांचवां पेरामीटर है-स्वभाव। आदमी का स्वभाव कैसा है ? आदमी आलसी है या कर्मठ ? आशावादी है या निराशावादी ? कुछ लोग ऐसे होते हैं जो आशा में भी निराशा ढूंढ़ निकालते हैं और कुछ लोग ऐसे होते हैं जो निराशा में भी आशा ढंढ़ निकालते हैं। आशावादी व्यक्ति नीरस वातावरण में भी आशा और उत्साह भर देता है। आप यह न मानें कि जो व्यक्ति हमेशा आशा और उत्साह की बात करते हैं वे अयथार्थ की बात करते हैं । वह जीवन का यथार्थ है, जीवन का पलायन नहीं है । वे इस सचाई में एक तथ्य यह जोड़ देना चाहते हैं जिससे कि वह सचाई वास्तविक सचाई या क्रियान्विति की सचाई बन जाए । "निराशा में आशा देखने वाले व्यक्ति ऐसे होते हैं। एक घटना है। आचार्य भिक्षु के समय में वेणीरामजी नाम के एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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