Book Title: Kisne Kaha Man Chanchal Hain
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 312
________________ चेतना का प्रस्थान : अज्ञात की दिशा २६६ संख्या को बढ़ाने बदलता है । जो श्वास छोटा होता है, उसको लंबा बना देता है, गति में दीर्घता आ जाती है, श्वास दीर्घ हो जाता है । सामान्यतः आदमी एक मिनट में १५-१७ श्वास लेता है । इसके आस-पास दो स्थितियां बनती हैं। एक स्थिति है श्वास की की और दूसरी स्थिति है श्वास की संख्या को घटाने की। दूसरे शब्दों में, एक स्थिति है श्वास की गति को छोटा करने की और एक स्थिति है श्वास की गति को लम्बा करने की । ये दो स्थितियां बनती हैं । जो व्यक्ति साधनारत नहीं हैं, बहुत आवेशशील हैं, वे व्यक्ति उस दिशा में प्रस्थान करते हैं कि श्वास की गति कम हो जाती है और उसकी संख्या बढ़ जाती है । १५१७ की संख्या ३० -४०, ५०-६० तक बढ़ जाती है। आवेश में, कषाय में, वासनातृप्ति में श्वास की संख्या बढ़ जाती है । पवास की संख्या बढ़ती है, गति घटती है और साथ-साथ प्राणशक्ति पर उसका प्रभाव पड़ता है । इसी प्रकार शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर होता है । किन्तु प्रेक्षा ध्यान की साधना करने वाला व्यक्ति सबसे पहले श्वास की गति को बदलने का प्रयास करता है । वह श्वास की गति की लम्बाई को बढ़ाता है । श्वास मंद हो, श्वास दीर्घ हो, श्वास सूक्ष्म हो, श्वास की सारी दिशा बदल जाए - यह साधक का प्रथम प्रयास होता है । फलस्वरूप श्वास की संख्या घटती है, लम्बाई बढ़ती है, मन शांत होता है । इसके साथ-साथ आवेश शांत होते है, कषाय शान्त होते हैं तथा उत्तेजनाएं और वासनाएं शान्त होती हैं । श्वास जब छोटा होता है तब वासनाएं उभरती हैं, उत्तेजनाएं आती हैं, कषाय जागृत होते हैं । जब श्वास छोटा होता है तब ये सब उभरते हैं या दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि जब ये उभरते हैं तब श्वास छोटा हो जाता । इन सबसे श्वास प्रभावित होता है । इन सब दोषों का वाहन है श्वास | ये श्वास पर आरोहण करके आते हैं । जब कभी मालूम पड़े कि उत्तेजना आने वाली है तब तत्काल श्वास को लम्बा कर दें, दीर्घ श्वास लेने लग जाएं, आने वाली उत्तेजना लौट जाएगी । इसका कारण है कि श्वास का वाहन उसे उपलब्ध नहीं हो पाता है । बिना आलम्बन के कोई उत्तेजना या वासना प्रकट नहीं हो सकती । ध्यान की साधना करने वाला साधक मन की सूक्ष्मता को पकड़ने में अभ्यस्त हो जाता है । वह जान लेता है कि मस्तिष्क के अमुक केन्द्र में कोई वृत्ति उभर रही है । वह तत्काल दीर्घश्वास का प्रयोग प्रारम्भ कर देता है । उभरने वाली वृत्ति तत्काल शान्त हो जाती है । साधक उन वृत्तियों का, उत्तेजनाओं का शिकार नहीं होता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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