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मानसिक स्वास्थ्य
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लगा । उसका विलाप कई दिनों तक चलता रहा। उसके मुंह पर उदासी छा गई । जो अरबपति हैं, करोड़पति हैं, उनके जेब से भी यदि सौ रुपये गुम हो जाते हैं, तो उसका सारा दिन उदासी में बीतता है । इसका मतलब है कि वे सचाई के प्रति समर्पित नहीं हैं । वे इस सचाई को नहीं जानते कि जहां संयोग होता है वहां वियोग निश्चित है । हम इस सचाई के प्रति समर्पित हों - 'संयोगाः विप्रयोगान्ता: ' संयोग विप्रयोग से जुड़े रहते हैं । जिस क्षण में संयोग होता है वहीं से वियोग का सिलसिला भी चालू हो जाता है । जन्म के साथ ही मृत्यु का क्षण भी प्रारंभ हो जाता है। जन्म का अंतिम परिणाम है मृत्यु | जन्म हो और मृत्यु न हो यह कभी संभव नहीं है । जो इस सचाई के प्रति समर्पित नहीं होते वे असंतुलित और विकृत हो जाते हैं । उनका मन अस्वस्थ हो जाता है । मानसिक रोग आक्रान्त कर लेता है । जो मृत्यु की सचाई को जानते हैं वे किसी के मर जाने पर अपना संतुलन नहीं खोते । कुछ दुःख होता है, किन्तु वह भी स्थायी नहीं रहता, क्षणिक होता है । जिन्होंने इस शाश्वत सत्य के प्रति समर्पण नहीं किया वे मृत्यु की घटना से विचलित हो जाते हैं और अपने मन को रोगी बना देते हैं ।
मानसिक स्वास्थ्य की साधना का चौथा सूत्र है - सहिष्णुता का विकास । सहिष्णुता को विकसित किए बिना कोई व्यक्ति संतुलित जीवन नहीं जी सकता । जो व्यक्ति सहिष्णु नहीं होता वह अपने मन को सदा दुःख में डा रहता है | कांच का बर्तन कब फूट जाए कहा नहीं जा सकता । असहिष्णु व्यक्ति का मन कब टूट जाए कहा नहीं जा सकता । सदा आशंका बनी की बनी रहती है । थोड़ी-सी कोई स्थिति आती है और तत्काल मन बेचैन हो उठता है । व्यक्ति ध्यान करने बैठता है । गर्मी के दिन हैं । पंखा अचानक बंद हो जाता है । अब मन ध्यान से हट कर पंखे में उलझ जाता है । मन तड़पने लगता है । मन इतना आकुल व्याकुल हो जाता है कि बेचारा ध्यान कहीं अटक जाता है ।
यह क्यों होता है ? यह इसीलिए होता है कि व्यक्ति ने सहिष्णुता का मूल्यांकन नहीं किया । हजारों पदार्थों के उपलब्ध होने या न होने पर भी सहिष्णुता अपना मूल्य नहीं खोती । जीवन की सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध हों, किन्तु वे शाश्वत नहीं हैं । यह सार्वभौम नियम है कि वे प्राप्त होती हैं और दूर हो जाती हैं। जिस क्षण में वे छूटती हैं उस क्षण में क्या बीतती है, यह वही व्यक्ति जान सकता है, जिसने सहिष्णुता को नहीं समझा
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