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शक्ति को श्रेयस् यात्रा
मन की शक्ति का जागरण जीवन की एक महत्त्वपूर्ण यात्रा है । जिसके चरण इस यात्रा में आगे नहीं बढ़ते, वह कुछ भी करने में सक्षम नहीं होता। अक्षम व्यक्ति दरिद्र होगा । उसकी दीनता कभी समाप्त नहीं होगी। वह जीवन-भर दया का पात्र बना रहेगा। इस दुनिया में अच्छा या बुरा जो कुछ हुआ है वह समर्थ व्यक्ति के द्वारा ही हुआ है । अशक्त व्यक्ति ने कुछ भी नहीं किया। उसने कुछ बुरा भी नहीं किया और कुछ अच्छा भी नहीं किया। शक्ति-संपन्नता जीवन की सफलता का पहला चिह्न है। किन्तु इतना ही पर्याप्त नहीं है । केवल शक्तिशाली होना ही पर्याप्त नहीं है। पर्याप्तता के लिए कुछ और भी होना आवश्यक है। शक्तिशाली व्यक्ति यदि ज्ञानी होता है तो जीवन की पर्याप्तता हो जाती है। शक्ति भी है, ज्ञान भी है। वह पुरुष शक्ति-संपन्न भी है और ज्ञान-संपन्न भी है । व्यक्ति शक्तिशाली है और अज्ञानी है तो शक्ति का दुरुपयोग होगा, शक्ति की अश्रेयस यात्रा शुरू हो जाएगी। शक्तिशाली पुरुष यदि ज्ञानी होता है तो जीवन की यात्रा श्रेयसोन्मुख हो जाती है । जब शक्ति और ज्ञान के सहयोग से श्रेयस् की यात्रा प्रारम्भ होती है तब व्यक्ति की सारी जीवन धारा बदल जाती है ।
एक मनुष्य शक्ति-संपन्न है किन्तु वह ज्ञान-संपन्न नहीं है तो वह दूसरों उत्पीड़न करेगा। तथ्य यह है कि वह स्वयं का भी उत्पीड़न करेगा। वह दूसरों को अयथार्थ की यात्रा पर ले जाएगा। दूसरों को ही नहीं, वह स्वयं अयथार्थ की यात्रा पर चल पड़ेगा। वह अनात्म की ओर बढ़ेगा। वह दूसरों को ठगेगा। साथ-साथ स्वयं को भी ठगेगा। उसकी सारी यात्रा अश्रेयस की यात्रा होती है, अकल्याण की यात्रा होती है। किन्तु जब ज्ञान और शक्ति-दोनों एक साथ घटित होते हैं तब व्यक्ति का सारा पुरुषार्थ, सारा पराक्रम श्रेयस् में लग जाता है। उसकी समूची यात्रा श्रेयस् की, कल्याण की ओर होती है। वह स्वयं को जानने का प्रयत्न करता है, स्वयं को पाने का प्रयत्न करता है । और जब व्यक्ति स्वयं को जानने और पाने का प्रयत्न करता है तब वह दूसरों के लिए अहितकर, अकल्याणकर या अश्रेयकर नहीं होता। वह ऐसा हो ही
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