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किसने कहा मन चंचल है में द्वंद्वातीत चेतना की खोज प्रारंभ होती है और मनुष्य सोचते हैं कि द्वंद्वचेतना के परे भी कोई निद्वंद्व चेतना हो जो मनुष्य को पूर्णता दे सके, अपू-" र्णता समाप्त कर सके । यह अभौतिकता की चाह जो अन्तर में होती है, उसे समझाने का मौका मिल जाता है।
प्रत्येक शरीर के चारों ओर एक आभामंडल होता है। आभामंडल निर्जीव वस्तु में भी होता है। एक सिद्धांत है कि प्रत्येक स्थूल पदार्थ से रश्मियां विकीर्ण होती हैं, रश्मियों का उत्सर्जन होता है। यही फोटोग्राफी का सिद्धांत है। मनुष्य के चले जाने पर भी, उस स्थान पर उस मनुष्य का फोटो लिया जा सकता है । वह फोटो इसीलिए लिया जा सकता है कि शरीर के चारों ओर से रश्मियां विकीर्ण होती हैं । आभामंडल को हम देख नहीं पाते, किन्तु उसको देखने की भी एक पद्धति है। आप अन्धेरे में बैठ जाएं। कहीं से प्रकाश की रेखा न आए। अपने हाथ को ऊंचा करें। थोड़े समय तक वैसे ही बैठे रहें। आपको हाथ तो दिखाई नहीं देगा, किन्तु हाथ के आसपास चारों ओर जो आभामंडल होता है वह दीखने लग जाएगा। दोनों हाथों को ऊंचा करेंगे तो यह लगेगा कि एक हाथ की रश्मियां दूसरे हाथ में जा रही हैं और दूसरे हाथ की रश्मियां पहले हाथ में आ रही हैं।
___ एक और प्रसिद्ध पद्धति है । दो व्यक्ति दस हाथ की दूरी पर अन्धेरे में बैठ जाएं । वे एक-दूसरे को दिखायी नहीं देंगे । वे यदि नग्न हों तो उनका आभामंडल स्पष्टता से दिखाई देने लगेगा। देखते-देखते कुछ समय के पश्चात् एक नीले रंग का आकार सामने दीखने लगता है। जो चीज प्रकाश में दिखायी नहीं देती वह अन्धेरे में दोखने लग जाती है।
अभौतिक सत्ता की चाह, चेतन तत्त्व की चाह जिसका हमें जीवन की चका-चौंध में, अन्धेरे में पता ही नहीं लगता था, किन्तु जहां भौतिक पदार्थों का सेवन करते-करते जीवन में घोर अन्धेरा छा जाता है तब पता चलता है कि भीतर में एक और भी चाह है जो इन चाहों से बहुत बड़ी चाह है। वह चाह ही इस सचाई को प्रकट करती है कि द्वंद्व-चेतना से परे भी मनुष्य निद्वंद्वचेतना को चाहता है। इस द्वंद्वातीत चेतना का नाम है-सामायिक । इस सामायिक के घटित होने पर, मन की गति पर एक अंकुश लग जाता है । मन की गति पर अंकुश होता है तब समस्याएं समाप्त होने लगती हैं। उस स्थिति में समस्यामुक्त, दुःखमुक्त जीवन का अभ्यास प्रारंभ हो जाता है ।
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