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किसने कहा मन चंचल है
बात है। बड़ी बात है मानसिक बोझ का कम होना, मन के बोझ से उपर उठना । कायोत्सर्ग करने वाला केवल भूमि से ही ऊपर नहीं उठता, वह मन के बोझ से भी ऊपर उठ जाता है। वह हल्का हो जाता है । यह प्रत्यक्ष लाभ है--कायोत्सर्ग का।
योग के सभी आचार्यों ने एक बात पर बल दिया कि जो भी व्यक्ति साधना में प्रवेश करे, उसे तत्काल कुछ अनुभव करा देना चाहिए। इससे उस साधक की आस्था साधना में जम जाएगी। यदि गुरु शिष्य को साधना का उपदेश देता रहे, कोरी व्याख्या समझाता रहे, कोरा विश्लेषण करता रहे और कुछ भी अनुभव न कराए तो वह योग्य गुरु नहीं हो सकता । साधना के क्षेत्र में अध्यापक का मुख्य काम है अनुभव कराना, समझाना गौण काम है। यदि साधना के क्षेत्र में समझाना या विश्लेषण अधिक हो और अनुभव न हो तो साधना का क्रम चल नहीं सकता। वह उपक्रम व्यर्थ हो जाता है। बुद्धि के क्षेत्र में समझाने की बात चल सकती है, किन्तु विज्ञान या साधना के क्षेत्र में यह नहीं चल सकती। विज्ञान का विद्यार्थी प्रत्येक सिद्धांत को प्रैक्टिकल रूप से सिद्ध करना चाहेगा। कोरा समझाने की बात उसे मान्य नहीं होगी। साधना का क्षेत्र विज्ञान का ही क्षेत्र है। यह पूरा वैज्ञानिक क्षेत्र है । इसमें केवल सिद्धांत नहीं चलता। इसमें प्रयोग और अनुभव चलता है।
यदि कायोत्सर्ग की व्याख्या, साधक को, बुद्धि के स्तर पर समझा दी जाए तो उसके दिमाग में और-और जो उलझनें हैं उनके साथ यह एक उलझन और बढ़ जाएगी। मनुष्य का मस्तिष्क बुद्धि के भार से पहले ही आक्रांत है, उसमें थोड़ा भार और बढ़ जाएगा। ऐसा नहीं होना चाहिए । हम चले हैं-भारमुक्ति के लिए और यदि हम और भार बढ़ाएं तो यह बुद्धिमत्ता नहीं होगी। हमें अनुभव के स्तर पर चलना है। स्वयं का प्रयोग और स्वयं का अनुभव ही अध्यात्म की साधना में साथी होते हैं। अपना अनुभव, अपना प्रयोग और अपना परीक्षण । सिद्धान्त को समझने का इतना-सा उपयोग है कि हमारी दृष्टि साफ हो जाए। दृष्टि के साफ होने पर फिर करना ही शेष रहता है। करना मुख्य होता है, जानना गौण हो जाता है।
साधना का पहला चरण है कायोत्सर्ग। इसकी निष्पत्ति है—तनाव की मुक्ति । कायोत्सर्ग करने वाला साधक पहले ही दिन या दूसरे दिन इस
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