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मानसिक शक्ति का विकास और उपयोग
हम अध्यात्म की साधना के लिए उपस्थित हैं। अध्यात्म की साधना आत्मा की साधना है। हमें आत्मा को जानना है, देखना है, अनुभव करना है । आत्मा को देखने के लिए शक्तिशाली अस्त्र चाहिए, विस्फोटक शक्ति चाहिए, जिससे कि हम आत्म-साक्षात्कार के बीच में आने वाली रुकावटों, अवरोधों तथा बाधाओं को पार कर वहां तक पहुंच सकें।
मात्मा को देखने के दो शक्तिशाली अस्त्र हैं--मानसिक शक्ति और प्राण शक्ति । एक अस्त्र है मन का और दूसरा है प्राण का। मानसिक शक्ति का जागरण और प्राण का संचय-ये दो महत्त्वपूर्ण साधन हैं । जब मानसिक योग और प्राणिक योग सधता है तब आध्यात्मिक शक्ति की बात सहज सघ जाती है। मन को शक्तिशाली बनाए बिना, प्राण की शक्ति को विकसित किए बिना यदि कोई व्यक्ति आध्यात्मिक शक्ति का साक्षात्कार करना चाहे, आत्मा को देखना-जानना चाहे तो यह चाह मात्र हो सकती है उसे सफलता कभी नहीं मिल सकती।
मन बहुत शक्तिशाली है। उसकी अनगिन शक्तियां हैं। वे प्रशिक्षण के द्वारा जागृत होती हैं। मन की दो स्थितियां हैं-प्रशिक्षित और अशिक्षित। अशिक्षित मन अपनी शक्तियों का विकास नहीं कर सकता। शक्तियां शक्तियांमात्र रह जाती हैं । आदमी सोया का सोया रह जाता है । वह कभी जागता ही नहीं । जागरण के बिना शक्ति का उपयोग ही नहीं हो सकता। जब मन एक निश्चित पद्धति से प्रशिक्षित हो जाता है तब आश्चर्यकारी घटनाओं को घटित करने में वह सक्षम हो जाता है। मन के प्रशिक्षण की एक पद्धति है। यह कोई आध्यात्मिक बात नहीं है। मन की शक्ति को जगाना कोई आध्यात्मिक घटना नहीं है, आध्यात्मिक जागरण नहीं है। जो लोग ज्ञान, दर्शन और चरित्र में पूर्ण निष्ठावान नहीं होते, जिनका आचरण बहुत ऊंचा भी नहीं होता, वे लोग भी मानसिक शक्ति का जागरण कर लेते हैं । क्योंकि यह तो एक पद्धति का अभ्यास है। कोई भी इसे कर सकता है। शरीर की लाघवता को घटित किया जा सकता है। शरीर को हल्का बनाना पद्धति
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