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किसने कहा मन चंचल है
जाना जा सकता है । अतीत की यात्रा भी हो सकती है और भविष्य की यात्रा भी हो सकती है । स्थूल पर्यायों की यात्रा भी हो सकती है और सूक्ष्म पर्यायों की यात्रा भी हो सकती है। देश-काल के परे भी जाना जा सकता है और देश-काल की दूरी को भी जाना जा सकता है । उसे समाप्त किया जा सकता है । इस प्रक्रिया से यह सब संभव है । अब यह व्यक्ति पर निर्भर होता है कि वह क्या साधना चाहता है ? जो व्यक्ति अपने लक्ष्य को बहुत ऊंचा निर्धारित करता है वह नीचे की बातों में नहीं फंसता ।
रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद से कहा - "तुम आर्थिक संकट में से . गुजर रहे हो । मां काली के पास जाओ और प्रार्थना करो कि तुम्हारा आर्थिक संकट मिट जाए ।" गुरु के आदेश को मानकर विवेकानन्द मां काली के समक्ष गए । हाथ जोड़े और कुछ बोलना चाहा । पर वे बोल नहीं सके । मां के ध्यान में लीन हो गए । प्रतिदिन ऐसा ही होता रहा । वे अपनी प्रार्थना कर ही नहीं पाए । एक बार रामकृष्ण ने पूछा - " क्या तुमने मां से प्रार्थना की ?" विवेकानन्द ने कहा- "मैं प्रार्थना कर ही नहीं पाता । भला, अपने छोटे-से स्वार्थ के लिए मां को कष्ट दूं ? यह नहीं हो सकता, कभी नहीं हो सकता ।"
जो व्यक्ति परम की साधना में लग जाता है, वह आत्मा की साधना में लग जाता है, उसके लिए आत्मा ही ध्येय है, आत्म-साक्षात्कार ही उद्देश्य है । वह अपनी सारी ऊर्जा और प्राणशक्ति को एक ही दिशा में, आत्मा की खोज में, प्रवाहित कर देता है, बीच में नहीं रुकता । यह वास्तविकता है कि जो भी अध्यात्म योगी हुए हैं, आत्मा की खोज करने वाले हुए हैं, वे बहुत चामत्कारिक नहीं हुए हैं । चमत्कारों के जाल में वे कभी नहीं फंसे हैं । जो अध्यात्म योगी नहीं हुए हैं, इस मध्यवर्ती मार्ग में रहे हैं, इसकी यात्रा की है, वे चामत्कारिक हुए हैं । उनका ध्येय सिमटकर इतना सा रह गया कि वे अनुग्रह और निग्रह की शक्ति को प्राप्त कर सकें । वरदान और शाप की शक्ति को करने में ही उन्होंने अपनी साधना नियोजित की । किसी का भला कर देना और किसी का बुरा कर देना --- यही सफलता का मानदण्ड बन गया । ऐसे लोग सामान्य जनता में आतंक - उत्पन्न कर देते हैं । भय से प्रताड़ित लोग ऐसे व्यक्तियों के भक्त बन जाते हैं । किन्तु यह सच है कि जिन्होंने चमत्कारों में पड़कर, प्रदर्शन को ही सब कुछ मान लिया, उन लोगों को दुःख का जीवन जीना होता है । वे व्यक्तिगत
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