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चेतना का तीसरा आयाम
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शक्ति को विकसित करने के लिए प्राणवायु की शक्ति का विकास करना बहुत आवश्यक होता है। प्राण की शक्ति को विकसित करने के लिए श्वास की शक्ति बहुत जरूरी है। इसकी एक श्रृंखला है । सूक्ष्म शरीर से प्राण की शक्ति आती है । उस प्राण के द्वारा प्राणी बनता है और यह प्राण की धारा श्वास के सहारे चलती है। श्वास का सहारा लिये बिना, श्वास के रथ पर चढ़े बिना प्राण को धारा नहीं चल सकती। श्वास और प्राण, श्वास और मन-~ये अभिन्न बन जाते हैं, अटूट कड़ी के रूप में काम करते हैं। एक कड़ी यदि अस्त-व्यस्त होती है तो दूसरी कड़ी भी गड़बड़ा जाती है। मन को हम सीधा (डाइरेक्ट) नहीं पकड़ सकते । बहुत शक्ति चाहिए मन को पकड़ने के लिए। प्राण की धारा को भी सीधा नहीं पकड़ा जा सकता। किन्तु श्वास के माध्यम से प्राण को पकड़ा जा सकता है और प्राण के माध्यम से मन को पकड़ा जा सकता है। मन को पकड़ने के लिए प्राण को पकड़ें और प्राण को पकड़ने के लिए श्वास को पकड़ें। जब श्वास की पकड़ आती है तब सारा व्यक्तित्व ही बदल जाता है। श्वास-परिवर्तन के द्वारा हम मानसिक विकास कर सकते हैं।
मानसिक विकास को बढ़ाने के लिए 'सामायिक' जरूरी होती है। जब तक सामायिक नहीं होती तो मानसिक विकास भी पर्याप्त नहीं होता। सामायिक के बिना समता का विकास नहीं होता और जो विकास है वह भी खंडित होने लगता है । जो निर्मित होता है वह टूटने लग जाता है। दोनों का योग है । मानसिक शक्ति का विकास हुए बिना सामायिक का विकास नहीं हो सकता और सामायिक का विकास हुए बिना मानसिक शक्ति का विकास नहीं हो सकता ।
सामायिक हमारी चेतना का तीसरा आयाम है। हम चेतना के दो आयामों में जीते हैं, जिनका सम्बन्ध द्वन्द्व की आपूर्ति से है। हमारे जीवन में बहुत सारे द्वन्द्व हैं। लाभ और अलाभ का एक द्वन्द्व है, सुख और दुःख का एक द्वन्द्व है, जीवन और मरण का एक द्वन्द्व है, निन्दा और प्रशंसा का एक द्वन्द्व है, मान और अपमान का एक द्वन्द्व है-ये पांच प्रकार के द्वन्द्व हैं। अध्यात्म शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र इन पांचों द्वन्द्वों के आधार पर चलते हैं। शकुन का शास्त्र भी इन्हीं द्वन्द्वों के आधार पर चलता है।
ज्योतिषी ग्रहों की गति के आधार पर लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण का निर्णय करता है । शकुन शास्त्री शकुनों के आधार पर और
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