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उपसंपदा
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कर रहे हैं और मन हजारों-हजारों मील की यात्रा में चल पड़ा, कुछ देखना शुरू कर दिया और व्यवधान डालने शुरू कर दिए तो क्रिया द्रव्य-क्रिया, अवास्तविक क्रिया होगी। शरीर और मन का योग न होना द्रव्य-क्रिया है। शरीर और मन का योग होना, दोनों का एक साथ रहना, एक साथ चलना, साथ-साथ कदम बढ़ाना, भाव-क्रिया है। हम इस बात की ओर कभी ध्यान नहीं देते कि शरीर और मन को साथ-साथ चलाना चाहिए। हमने मान लिया कि जब शरीर चलता है तो मन कहीं भी चले हमारा क्या लिया ? इस बात की परवाह नहीं करते और फिर ऐसी आदत बन जाती है कि हर काम में मन के व्यवधान और हस्तक्षेप आते रहते हैं । इन हस्तक्षेपों को मिटाना इस साधना का मुख्य उद्देश्य है। उसके लिए भाव-क्रिया करें यानी शरीर और मन को साथ-साथ चलाएं। भाव-क्रिया के विभिन्न अर्थों को ठीक से समझ लें । पहला अर्थ है -- वर्तमान में जीना। हमारे सामने तीन काल हैं-अतीत, भविष्य और बीच में है वर्तमान । हम जब-जब स्मृतियों में उतरते हैं, अतीत की यात्रा शुरू हो जाती है। या जब अतीत की यात्रा शुरू हो जाती है तब स्मृतियों में उतर जाते हैं । जब भविष्य की यात्रा शुरू करते हैं तब कल्पनाओं का ताना-बाना बुनने लग जाते हैं। भाव-क्रिया के लिए जरूरी है कि न स्मृति, न अतीत की यात्रा । न कल्पना, न भविष्य की यात्रा । केवल वर्तमान में जीने का अभ्यास करें, वर्तमान में रहें और वर्तमान के क्षण को गहराई से देखें । वर्तमान के क्षण को देखने का मौका ही नहीं मिलता जब हम अतीत और भविष्य में बस जाते हैं । वर्तमान में जीएं, वर्तमान को देखें । यह है-भाव-क्रिया। दूसरी बात-जो भी करें। अच्छा करें या बुरा भी कोई करें तो जानते हुए करें । बेहोशी में न करें, प्रमाद में न करें। जानते हुए करें। वह भाव-क्रिया हो जाती है। तीसरी बात-ध्येय के प्रति सतत अप्रमत्त रहने का अभ्यास करें। हमने जो ध्येय बनाया उसके प्रति निरन्तर जागरूक रहने का अभ्यास करें। वह भाव-क्रिया होगी। हमारी जागरूकता बढ़ेगी। हमारे इस अनुष्ठान का ध्येय है मन को निर्मल बनाना, यानी सत्य को उपलब्ध करना । सत्य तब उपलब्ध हो सकता है जब मन निर्मल हो । स्वच्छ दर्पण में तो ठीक प्रतिबिम्ब पड़ सकता है किन्तु दर्पण यदि धुंधला हो तो उसमें कैसे प्रतिबिम्बित होगी कोई वस्तु ? इसलिए मन को निर्मल बनाना जरूरी है और जो मन निर्मल होगा वह निश्चित ही शक्तिशाली होगा । मलिन मन कभी शक्तिशाली नहीं बन सकता । हमारा ध्येय है-मन
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