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किसने कहा मन चंचल है
तनाव सारे दुःखों का मूल है। तनाव से मुक्त होने का अर्थ है कषायों से मुक्त होना - क्रोध से मुक्त होना, मान से मुक्त होना, माया से मुक्त होना और लोभ से मुक्त होना । तनाव कषायों को उत्तेजित करता है । उत्तेजित कषाय तनाव को भी उत्तेजित करते हैं, तनाव बढ़ता है । कषाय से तनाव और तनाव से कषाय - यह चक्र बन जाता है । इस चक्र के
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बीच में रहता है आदमी । वह सारे दुःखों को झेलता जाता है । सारी -आधियां और व्याधियां उसे झकझोरती हैं । वह बेचारा सहता है । दुःख भोगता है। पीड़ा का अनुभव करता है ।
बहुत सारी व्याधियां तनाव के कारण उत्पन्न होती हैं । प्राचीन ग्रन्थों में बीमारी के दो प्रकार बतलाए हैं - आगंतुक बीमारी और कर्मज बीमारी । बीमारी के तीन कारण हैं-वात, पित्त और कफ । कोई चोट लगी । यह आगंतुक बीमारी है, कष्ट है । पूर्व संचित संस्कारों से उत्पन्न होने वाली बीमारी कर्मज है । एक होती है मानसिक बीमारी । बीमारियों के ये अनेक -प्रकार हैं ।
आज के शरीरशास्त्रियों ने एक बीमारी का उल्लेख किया है । वह है " साइकोसोमेटिक' । यह शारीरिक और मानसिक बीमारी का द्योतक शब्द है । प्राचीन ग्रन्थों में मानसिक बीमारी को 'आधि' और शारीरिक बीमारी - को 'व्याधि' कहा गया है । आज की भाषा में दोनों का संयुक्त नाम है'साइकोसोमेटिक' अर्थात् 'मनोदैहिक' बीमारी - शरीर की बीमारी और मन की बीमारी ।
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मन तनाव से भरा है, भारी है, अशान्त है तो अनेक बीमारियां उत्पन्न होंगी । इन बीमारियों का मूल कारण बनता है मन, और आदमी दोष मढ़ता है शरीर पर कि शरीर कमजोर है, शरीर के परमाणु रोगग्रस्त हैं, शरीर के तंतु ढीले हैं। बीमारी मन पैदा कर रहा है और दोषी बन रहा है शरीर । यह कैसा न्याय !
मनोदैहिक बीमारियां बहुत ही जटिल होती हैं । आज का मानव इनसे ग्रस्त है और उसके कष्ट बढ़ते ही चले जा रहे हैं ।
योगमनस्कार ने एक महत्त्व की सूचना दी है। उन्होंने लिखा है"व्याधि और आधि—ये दोनों प्रकार के रोग मनुष्य की मूर्खता के कारण "उत्पन्न होते हैं ।" यह बहुत बड़ा तथ्य है कि मनुष्य के अज्ञान के कारण शारीरिक रोग-व्याधियां होती हैं और मानसिक रोग-आधियां होती
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