________________
सत्य को स्वयं खोजें
१८६
विफल हो जाता है । विरोधी दल के अभाव में सत्तारूढ़ दल उन्मादक बन जाता है, अनियंत्रित हो जाता है। यदि विरोधी दल सबल होता है तो सत्तारूढ़ दल मनमानी नहीं कर सकता है। वह जागरूकता और सावधानी से काम करता जाता है।
समूचे विश्व की प्रकृति में पक्ष और प्रतिपक्ष का अस्तित्व है। पदार्थ जगत् और चेतन जगत् भी इसका अपवाद नहीं है । इसे हम समझे।
भगवान महावीर ने अनेकान्त की घोषणा की। यह बुद्धि का प्रतिफलन नहीं है । उन्होंने बुद्धि के आधार पर सोच-विचार कर अनेकान्त के सिद्धान्त को, समन्वय के सिद्धान्त को, सापेक्षता के सिद्धान्त को नहीं दिया किन्तु जब अहिंसा के स्तर पर साधना करते-करते मैत्री का भाव जागा और उसके नीचे की गहराइयों को देखा तो लगा कि इस विश्व में शत्रु जैसा कुछ भी नहीं है । व्यर्थ ही मिथ्या धारणा को कंधे पर ढो रहे हैं। शत्रुता का कोई आधार नहीं है । उन्होंने कहा-“यदि सत्य को जानना है। देखना है तो अनेकान्त की दृष्टि से देखो, समन्वत की दृष्टि से देखो, सापेक्षता की दृष्टि से देखो। विरोधी युगल साथ रहते हैं, इस सचाई का प्रतिपल अनुभव करो । सदा यह विरोधी युगल साथ रहता है, कभी नहीं टूटता।"
हमने सत्य की खोज प्रारंभ की। सत्य की खोज का दूसरा प्रयोग है-श्वास और शरीर का आलंबन, मन का आलंबन । एक प्रश्न होता हैमन को कैसे रोकें ? मन अशान्त है, उसे शान्त कैसे करें ? यहां हमें एक सचाई को समझना है । मन और उसको रोकना-ये दो बातें कैसे संभव हो सकती हैं ? हवा चल रही है । मकान पर झंडा फहरा रहा है । वह हवा के सहारे हिल रहा है। हवा चलती रहे और झंडा न हिले-यह कैसे संभव हो सकता है ? बर्फ गिर रही है । उसके योग से हवा ठंडी चल रही है। आप चाहें कि बर्फ गिरती रहे पर हवा ठंडी न रहे, गरम हो जाए, यह कैसे संभव हो सकता है ? हो ही नहीं सकता। बर्फ गिरेगी तब हवा ठंडी हो जाएगी। गर्मी का प्रकोप होगा तब हवा गरम हो जाएगी। हवा को आप गरम या ठंडी होने से नहीं रोक सकेंगे । हवा चलती है तो झंडे को हिलने से नहीं रोका जा सकता।
दो स्थितियां हैं। एक मन और दूसरा अमन । मन की तीन अवस्थाएं हैं
१. समनस्कता २. अमनस्कता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org