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किसने कहा मन चंचल है:
हम प्रेक्षा करते हैं। हम संकल्प और भावना का प्रयोग करते हैं। हम सूक्ष्म तरंगों का प्रयोग करते हैं। लेश्या-ध्यान का प्रयोग करते हैं । ये सब एक प्रकार के युद्ध ही हैं । इनसे साधक सभी दोषों पर विजय प्राप्त कर सकता है । वह सब आक्रमणों को विफल कर सकता है।
आज विज्ञान के क्षेत्र में अनेक प्रयोग चल रहे हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि आने वाले युद्ध मानसिक स्तर पर लड़े जाएंगे। उनमें सेना की आवश्यकता नहीं रहेगी। मन को इतना शक्तिशाली बनाया जाएगा कि वह हजारों मील दूर रह रहे शत्रु को परास्त कर सके, उसे क्लीव बना सके, उसे शक्तिहीन बना सके।
मानसिक विकास के लिए वे प्रयत्न कर रहे हैं । यदि वे इस दिशा में सफल हो जाएंगे तो भी हानि है और नहीं होंगे तो भी हानि है।
किन्तु साधक को इस ओर निश्चित ही प्रयोग करना है और मानसिक क्षमता को इतना विकसित करना है कि जिससे शत्रुओं का शस्त्रागार उन्हीं के संहार के लिए काम में आ सके। मूर्छा और मोह के सारे अस्त्रशस्त्र उन्हीं के संहार में काम आएं। यह सब मानसिक क्षमता को बढ़ाने से हो सकता है। इसकी सफलता के लिए दृष्टियुद्ध, भावनायुद्ध, तरंगयुद्ध, वाक्युद्ध-आदि से गुजरना होगा। इन सारे मोर्गों पर लड़ना होगा। प्रतिपल जागरूक रहना होगा। रणनीति को सबसे पहले समझना होगा। रणनीति को समझे बिना लड़ाई नहीं जीती जा सकती । यह रणनीति है. प्रेक्षा-ध्यान की विधि । इसी को ठीक समझने के लिए मैं बार-बार कह रहा हूं । इसको समझे बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते । यदि हम विधि को समझ लेते हैं तो आठ आना सफलता हमें प्राप्त हो जाती है। यदि विधि को ठीक से नहीं समझा जाता है तो मन संदेहों से भरा रहता है। साधक सोचता है-श्वास को देखने से आत्मा कैसे उपलब्ध होगी? यदि श्वास को देखने से ही आत्मा उपलब्ध होती है तब तो श्वास को देखने वाले अनेक यंत्र मिल जाएंगे जो श्वास का पूरा ग्राफ लेते हैं, उसका रेखांकन करते हैं, उसका माप करते हैं। फिर प्रश्न होता है-शरीर-प्रेक्षा से आत्मा कैसे प्राप्त होगी ? अशुचि से भरे, मल-मूत्र से भरे इस शरीर को देखने से आत्मा कैसे उपलब्ध होगी? यही संदेह विधि को न समझने के कारण हो सकता है। साधक उलझ जाता है।
एक यात्री जा रहा था। अंधेरी रात थी। उसे लम्बा रास्ता तय.
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