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आजादी की लड़ाई
२०१ व्यक्ति नहीं है। साधु कोई व्यक्ति नहीं है। धर्म भी कोई व्यक्ति नहीं है । कोई सत्ता नहीं है।
__ अपनी ही आत्मा की सर्वोच्च अहंता, सर्वोच्च समता का विकास है, वह है अर्हत् । अपनी ही आत्मा की संपूर्ण सिद्धि का जो चरम बिन्दु है, वह है सिद्ध । अपनी साधन का जो निर्मल रूप है, वह है साधु । अपनी आत्मा का जो पूरा समर्पण है ज्ञान की अराधना के लिए, दर्शन की आराधना के लिए, चारित्र की आराधना के लिए, वह है धर्म । धर्म के प्रति समर्पण, साधना के प्रति समर्पण, सिद्ध के प्रति समर्पण और अर्हत् के प्रति समर्पण । पूरा समर्पण । जब साधक महान् शक्तियों के प्रति इतना समर्पित हो जाता है तब पराजित होने का कोई कारण ही शेष नहीं रहता।
महाराज कोणिक युद्ध कर रहा था। पराजय की वेला सामने थी। स्थिति लड़खड़ाने लगी तब वह इन्द्र के प्रति समर्पित हो गया । अब कोणिक का काम लड़ना नहीं रहा। लड़ने का कार्य इन्द्र पर आ गया। जब इन्द्र ने स्थिति संभाल ली तब उसके सामने कोई योद्धा कैसे टिक पाता। कोणिक विजयी हो गया। जब हम महान् सत्य के प्रति समर्पित होते हैं, तब हमारी शक्ति शतगुणित हो जाती है। फिर हार या पराजय का प्रश्न ही नहीं
उठता।
साधना के विघ्न और भी हैं। प्रमाद, अकर्मण्यता और आलस्यये मोह के ही योद्धा हैं जो बार-बार आक्रमण करते हैं। युद्ध में दोनों प्रकार के शस्त्र प्रयुक्त होते हैं-अनुकूल और प्रतिकुल । प्रतिकूल शस्त्र रणभूमि में कार्यकर होते हैं तो अनुकूल शस्त्र बिना रणभूमि के भी कार्य करते रहते हैं । दोनों से ही युद्ध जीता जाता है। आज के युद्ध में दोनों प्रकार के शस्त्रास्त्र काम में लिए जाते हैं । एक ओर अणुबम, टैंक आदि-आदि काम में आते हैं। दूसरी ओर सुन्दरियां और गुप्तचर भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । सुन्दरियों को बड़े-बड़े अधिकारियों के पास भेजा जाता है। वे उनको मोहित कर सारे रहस्य जान लेती हैं और फिर उन रहस्यों को अपने मूल अधिकारियों के पास पहुंचा देती हैं। आज भी प्रत्येक राष्ट्र के पास ऐसी हजारों सुन्दरियां हैं जो दूसरे-दूसरे राष्ट्रों में गुप्तचरी करती हैं। मोहक अस्त्रों का यह प्रयोग भी युद्ध का अंग बन चुका है। केवल मारक अस्त्रों से ही काम नहीं चलता, मोहक अस्त्र भी काम में लिए जाते हैं।
साधना के क्षेत्र में प्रमाद मोहक अस्त्र है। जब प्रमाद आता है तब
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