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स्थूल और सूक्ष्म की मीमांसा
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है-नाम का । हमारा स्थूल शरीर नामकर्म के कारण बनता है। सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर को बनाए बिना नहीं रहता, क्योंकि इसे अपनी अभिध्यक्ति के लिए कुछ न कुछ चाहिए । सारी अभिव्यक्ति स्थूल शरीर के माध्यम से होती है, इसलिए स्थूल शरोर का निर्माण होता है। नामकर्म के उपविभागों की संख्या भी सबसे अधिक है। किसी कर्म के विभाग हैं आठ, किसी के पांच, किसी के दो तो किसी के अट्ठाईस । नामकर्म के विभाग सौ से अधिक हैं। उनमें एक विभाग है-निर्माण नामकर्म । यही शरीर का निर्माता है । यह एक शिल्पी है । कोशिकाओं का निर्माता भी यही है। वह पुरानी कोशिकाओं को नष्ट कर रहा है और नई कोशिकाओं का निर्माण कर रहा है। वह जीर्ण-शीर्ण अंगों को नष्ट कर नये अंगों का निर्माण कर रहा है । वह सदा कर्मरत है, जागृत है, निरन्तर काम में लगा रहता है। वह दोनों काम करता है-उत्पन्न भी करता है और व्यवस्था भी करता है। वह नए अवयव को उत्पन्न करता है, उसके परिणाम का निश्चय करता है कि वह कितने भाग में होगा और उसकी व्यवस्था भी करता है।
आज का शरीर विज्ञान बतलाता है कि कोई व्यक्ति काला है और कोई गोरा । इसका नियामक सूत्र क्या है ? उसका मानना है कि यह सब गुणसूत्र के द्वारा होता है । कर्मशास्त्री कहते हैं कि नामकर्म का एक विभाग है 'वर्ण नामकर्म' । इसी के द्वारा प्राणियों का वर्ण निर्धारित होता है । यही नियामक है।
जीन के आविष्कार ने वैज्ञानिक जगत् में हलचल पैदा कर दी है। उसमें सारे संस्कार मूक्ष्म शरीर से प्रवाहित होकर आते हैं और इस स्थूल शरीर में अभिव्यक्त होते हैं ।
___आज एक नई खोज और हुई है। एक व्यक्ति कमरे में बैठा है । वह एक घंटा उस कमरे में बैठकर चला गया। बाद में उस कमरे के वायुमंडल के विश्लेषण के आधार पर उस व्यक्ति को पहचान लिया जाता है।
संघने के आधार पर अपराधी को पहचानने में कुत्तों का उपयोग हो रहा है। वैज्ञानिकों ने गंध-विश्लेषकों का निर्माण किया है। उसके आधार पर अमुक क्षेत्र के वायुमंडल को सूंघकर वह बता देता है कि अमुक प्रकार का व्यक्ति यहां आया था, बैठा था आदि-आदि । यह शरीर की गंध के
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