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स्थूल और सूक्ष्म की मीमांसा
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हमारी प्रज्ञा का नियन्त्रण सक्ष्म शरीर करता है । हमारी इन्द्रियों की शक्ति का तथा वर्ण, गंध, रस और स्पर्श का नियन्त्रण सूक्ष्म शरीर करता है। हमारी सारी शक्ति का नियामक है सूक्ष्म शरीर । दूसरों को चोट पहुंचाने की क्षमता या दूसरों से चोट न खाने की क्षमता का नियन्त्रण भी सूक्ष्म शरीर से ही होता है । इस प्रकार नामकर्म के अनेक उपविभाग हैं। उनका अपना-अपना कार्य है। सब कार्य स्वतःसंचालित हैं ।
स्थूल शरीर में जो क्रियाएं हो रही हैं, विज्ञान उनको जानता है। किन्तु वह यह नहीं जानता कि वे क्यों हो रही हैं। वह उन क्रियाओं के पीछे कारण-शृंखला को नहीं जानता। वह यदि इस बात को भी समझ पाता कि स्थूल शरीर से आगे सूक्ष्म शरीर का भी अस्तित्व है, जिसके द्वारा सारी व्यवस्थाएं हो रही हैं, जो एक कंट्रोल-रूप की तरह हैं, जो सारे नियंत्रण कर रहा है यदि यह तथ्य समझ में आ जाए तो बहुत सारी समस्याएं सुलझ सकती हैं।
____ शरीर नामकर्म अनेक शरीरों का निर्माण करता है। एक है स्थूल शरीर । यह हाड़-मांस और रक्तमय शरीर है। एक है तैजस शरीर । यह हमारा विद्युत् शरीर है। सारी व्यवस्था के संचालन में इसका योग है। इसके आगे है कर्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच सेतु का काम करता है तेजस शरीर।
मैं बोल रहा हूं। मेरे सामने माइक है। मेरे शब्द दूर तक संचरण कर रहे हैं । यह विद्युत् के सहारे हो रहा है । विद्युत् का काम संवहन करना है । तैजस शरीर यही काम करता है। कर्म शरीर के द्वारा जो कुछ स्थूल शरीर में आ रहा है वह सारा तेजस शरीर के द्वारा आ रहा है । यदि यह सेतु नहीं होता तो सूक्ष्म शरीर या कर्म शरीर कुछ नहीं कर पाता। कर्म शरीर कर्म शरीर बना रहता। अकेला पड़ जाता । स्थूल शरीर कुछ भी संक्रांत नहीं होता । वह अकेला पड़ जाता। दोनों के बीच कोई सम्बन्ध-सूत्र नहीं रहता । तेजस शरीर विद्युत् शरीर है। यही माध्यम बनता है। सूक्ष्म शरीर का बिम्ब स्थूल शरीर में प्रतिबिम्बित होता है।
____ हम श्वास लेते हैं । श्वास के साथ प्राण का ग्रहण होता है। यदि तेजस शरीर न हो तो प्राण कर्म शरीर या सूक्ष्म शरीर तक नहीं पहुंच पाता। इसी प्रकार तैजस शरीर के अभाव में सूक्ष्म शरीर की प्राणशक्ति स्थूल शरीर तक नहीं पहुंच पाएगी। हमारी भाषा की शक्ति, मन की शक्ति और स्थूल
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