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मानसिक तनाव का विसर्जन
प्रिय का संयोग होता है और अप्रिय का वियोग और कभी अप्रिय का संयोग होता है और प्रिय का वियोग ! यह चक्र चलता रहता है। ऐसा एक भी प्राणी नहीं मिलेगा जिसके सदा प्रिय का संयोग ही रहे, वियोग हो ही नहीं और ऐसा व्यक्ति भी नहीं मिलेगा जिसके सदा अप्रिय का संयोग ही रहे, वियोग हो ही नहीं । संयोग और वियोग का चक्र निरंतर गतिमान है। यह विश्व का नियम है। कोई भी इसका अपवाद नहीं है । विश्व में ऐसा घटित होता है कि जिसे हम चाहते हैं वह प्राप्त नहीं होता, जिसे हम चाहते हैं वह चला जाता है और नहीं चाहते वह प्राप्त हो जाता है, जिसे हम नहीं चाहते वह नहीं जाता।
जाने वाला चला जाता है। हम व्यर्थ ही दुःखी हो जाते हैं। किसी का लड़का किसी का पति, किसी का भाई, किसी की पत्नी, किसी की बहिन, किसी की संपत्ति, किसी का वैभव, किसी का राज्य और किसी की सत्ता चली जाती है । चलने वाला चला जाता है । फिर सब व्यक्ति दुःखी हो जाते हैं।
संयोग दो तरफ का होता है। जो चला गया वह भी एक संयोग हैं और जो पीछे बचा, वह भी एक संयोग है । जब जाने वाला चला ही गया तब हमें फिर यह भावना क्यों सताए कि पीछे रहने वाले व्यक्ति रोते ही रहें। यह भावना का आवेग आता है। यह आर्तध्यान है। भावनात्मक तनाव कभी समाप्त ही नहीं होता। वर्षों के वर्ष बीत जाते हैं। तनाव बना का बना रहता है । वह सतत शल्य की तरह चुभता रहता है।
जब तक आर्तध्यान से छुटकारा नहीं होता तब तक हम सुख की अनुभूति नहीं कर सकते, भारहीनता या लाघव की अनुभूति नहीं कर सकते ।
रौद्रध्यान भी भावनात्मक तनाव का कारण बनता है । मन में संकल्पविकल्प चलता रहता है। कभी हिंसा का भाव पैदा होता है, कभी प्रतिशोध का भाव पैदा होता है। मूल घटना कुछ क्षणों की होती है, किन्तु प्रतिशोध की भावना वर्षों तक चलती रहती है। मन में निरंतर बदला लेने की भावना बनी रहती है । इसी में सारी शक्ति का व्यय होता है। यही तनाव का कारण है।
____लोग पहले भी व्यापार करते थे और आज भी करते हैं। पहले के व्यापार में इतना तनाव नहीं रहता था, जितना आज रहता है। आज का व्यापारी जब प्रातःकाल उठता है, तब से ही उसका मन तनाव से भारी
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