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स्थूल और सूक्ष्म की मीमांसा
विश्व में जितने प्राणी हैं, सब यौगिक हैं, कोई भी शुद्ध नहीं है। जीव है । शरीर है । चेतना शरीर के बिना अभिव्यक्ति नहीं होती और शरीर चेतना के बिना निर्मित नहीं होता । चेतना और शरीर-इन दोनों का योग है, इसलिए सभी प्राणी यौगिक हैं। शुद्ध चेतना जैसी कोई वस्तु उपलब्ध नहीं होती। यह मात्र भावी की कल्पना हो सकती है । न जाने जीव और शरीर, चेतना और शरीर कब से साथ हैं ? इसकी कोई व्याख्या नहीं की जा सकती । यह कब से है ? क्यों है ? कैसे है ? ---ये प्रश्न अनुत्तरित ही हैं : इसके लिए इतना मात्र कहा जा सकता है कि यह सब अनादि काल से है । वह काल जिसका आदि नहीं है, शुरूआत नहीं है । इसके अतिरिक्त हमारे पास इसका कोई उत्तर नहीं है । यह योग अनादि है। ऐसा लगता है कि जीव और पुद्गल में एक समझौता है, पुद्गल की एक शर्त है जीव के साथ कि तुम मेरी सीमा से बाहर नहीं जा सकते, मेरे प्रभाव-क्षेत्र से मुक्त नहीं हो सकते । जीव अनादिकाल से शरीर के प्रभाव-क्षेत्र में रह रहा है, उसकी सीमा से मुक्त नहीं हो रहा है । जीव की भी एक शर्त है पुद्गल (शरीर) के साथ कि तुम मेरे मौलिक अस्तित्व को निर्मूल नहीं कर सकते, विभक्त नहीं कर सकते । शरीर अपनी शर्त को निभा रहा है । वह जीव के मौलिक स्वरूप को विकृत नहीं कर रहा है । जीव मौलिक स्वरूप में है, पर वह शरीर के प्रभाव-क्षेत्र से मुक्त नहीं है। शरीर जीव पर अपना प्रभाव डाल रहा है, किन्तु उसकी मौलिक सत्ता को कभी निर्मूल नहीं कर पाता। इसी आधार पर बहुत कुछ बताया गया है ।
____ जानना एक बात है और उसे बताना दूसरी बात है। जानना स्वगत होता है । बताने में भाषा का माध्यम लिया जाता है। भाषा की अपनी सीमा है अतः बताना भी सीमित हो जाता है । जानने को अनन्त है किन्तु भाषा में अनन्त जैसा कुछ भी नहीं है। भाषा में सीमित अभिव्यक्ति ही हो सकती है। भाषा अनन्त नहीं और भाषा में जो प्रतिपाद्य होता है, वाच्य होता है, वह अनन्त हो ही नहीं सकता। जब भाषा अनन्त नहीं, सीमित है,
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