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शक्ति-जागरण : मूल्य और प्रयोजन
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आध्यात्मिक बनने का सबसे सरल उपाय यह है कि श्वास के साथ मन को जोड़ देना, दोनों का योग कर देना । यह है शक्ति-जागरण का पहला सूत्र । यह है नये प्रस्थान का आरंभ बिन्दु ।
मन श्वास के साथ जुड़ गया । अन्तर्यात्रा प्रारंभ हो गयी। अब प्रश्न है शक्ति के जागरण का । इस प्रश्न को समाहित करने के लिए हमें शक्ति के स्वरूप को समझाना होगा।
विश्व में जितने तत्त्व हैं, सब में शक्ति है । कोई भी ऐसा तत्त्व नहीं है जो शक्ति-शून्य हो । जो शक्ति-शून्य है वह तत्त्व नहीं हो सकता।
__दर्शनशास्त्र में सत् और असत्-इन दो तत्त्वों की चर्चा है । सत् वह है जिसमें अर्थ-क्रियाकारिता है । असत् वह है जिसमें अर्थ-क्रियाकारित्व नहीं है । दो शब्द हैं - वृक्ष-कुसुम और आकाश-कुसुम, वृक्ष का फूल और आकाश का फूल । दोनों में अन्तर क्या है ? एक सत् है, एक असत् है। एक का वास्तविक अस्तित्व है और एक केवल कल्पनामात्र है। वृक्ष का फूल सत् है क्योंकि वह वास्तविक है। वह वास्तविक इसलिए है कि उसमें अर्थक्रिया है। उसमें निरन्तर क्रिया चलती है। उसमें शक्ति है। वह चल रही है। जिसमें प्रतिक्षण शक्ति चल रही है, वह सत् है, वास्तविक है । आकाश-कुसुम में कोई क्रिया नहीं होती। उसकी कोई शक्ति नहीं है । वह असत् है। शक्ति सत् का लक्षण है । प्रश्न होता है-क्या चेतन का लक्षण भी शक्ति है ? यहां एक बात और जुड़ जाती है । जिसमें शक्ति है वह सत् है और जिसमें शक्ति और चेतना ---दोनों होते हैं वह चेतन है । परमाणु में शक्ति है, किन्तु चेतना नहीं है । आत्मा में शक्ति भी है और चेतना भी है।
शक्ति और चेतना का योग-यह हमारी विशेषता है । इसीलिए हम चेतनावान हैं, संवेदनशील हैं। हम अनुभव करते हैं, संवेदन करते हैं और अपनी शक्ति का उपयोग करते हैं । आज के विज्ञान ने यह स्पष्ट रूप से घोषित किया है कि एक परमाणु में इतनी शक्ति है कि यदि उसका विस्फोट हो जाए (किन्तु ऐसा कभी होता नहीं है) तो सारा संसार नष्ट हो सकता है। परमाणु में अनन्त शक्ति होती है । आत्मा में भी अनन्त शक्ति होती है । परमाणु में कभी विस्फोट होता नहीं, यह जागतिक सचाई है, यूनिवर्सल
परमाणु में जब इतनी शक्ति है तब कल्पना करें कि चेतना में कितनी शक्ति होगी। शक्ति भी अनन्त और चेतना भी अनन्त । दोनों का योग है
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