________________
१२४
किसने कहा मन चचल है
हो।
शरीर के अणु-अणु को देख लिया। हड्डियां, मांस, मज्जा, रक्त आदि दिखाई दिए। और आगे बढ़े। सूक्ष्मता में प्रवेश किया। वृत्तियों के केन्द्रों की जानकारी हुई। कुछ और आगे बढ़े और सूक्ष्म शरीर के अस्तित्व को न मानने की बात समाप्त हो गई। अतीन्द्रिय द्रष्टाओं ने जो प्रत्यक्ष किया था, जिन्होंने सूक्ष्म शरीर के अस्तित्व को स्वीकारा था, आज का विज्ञान सूक्ष्म उपकरणों से वहां तक पहुंच गया। उसने तेजस शरीर के अस्तित्व को स्वीकार लिया । आत्मा को मानने की बाधा पूर्णतः समाप्त नहीं हुई है । विज्ञान उस दिशा में गतिशील है, परंतु अभी तक वह किसी महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया है। अतीन्द्रिय द्रष्टाओं की दृष्टि से आत्मा की स्वीकृति में कोई बाधा नहीं है किन्तु विज्ञान के आधार पर उसे पूर्ण स्वीकृति देना संभव नहीं है।
साधना का प्रयोजन है स्थूल शरीर को भेद कर सूक्ष्म शरीर तक पहुंचना । हम पहले स्थूल शरीर के प्रकंपनों को देखें, स्थूल शरीर में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों को देखें, स्थूल शरीर में घटित होने वाले जैविक परिवर्तनों को देखें और ग्रंथियों के स्रावों को देखें-समझे।
___ शरीर में प्रतिक्षण परिवर्तन हो रहा है; एक पर्याय प्रकट हो रहा है, दूसरा पर्याय नष्ट हो रहा है। यह उत्पाद और व्यय का चक्र निरंतर चल रहा है। उस चक्राकार पर्याय के स्रोत को हम देखें। इतना ही देखना पर्याप्त नहीं है। यह तो केवल स्थूल को देखना ही हुआ। हमें सूक्ष्म को भी देखना है। हम देखने की अपनी शक्ति को इतना विकसित करें कि किसी उपकरण या यंत्र की सहायता के बिना भी हम तेजस शरीर को साक्षात् देख सकें, आभा-मंडल को देख सकें और आगे बढ़कर कर्म शरीर को भी देख सकें। उसमें होने वाले कर्म-विपाकों को भी देख लें । इन सबको देखकर हम उसको भी देख लें जहां देखने वाला और देखना दो नहीं रहते। देखने वाला स्वयं देखने वाला ही रहे, द्रष्टा ही रहे । द्रष्टा और दृश्य एक हो जाते हैं, उसे भी देखें। हम चलते-चलते अपने चैतन्य के मूल स्वरूप में चले जाएं, उसमें अवस्थित हो जाएं । बहुत लंबी यात्रा है । अभी हमने यात्रा का प्रारंभ ही किया है। हमें बहुत दूर पहुंचना है। हम उत्साह, वीर्य और शक्ति को बढ़ाएं जिससे कि यात्रापथ निर्बाध हो सके और हम यात्रा को आनन्दपूर्वक संपन्न कर लक्ष्य तक पहुंच सकें।
भगवान् महावीर से पूछा- "भंते ! प्रमाद किससे प्रवाहित होता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org