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आध्यात्मिक सुख
७५ होते हैं । मन के स्पंदन और वाणी के स्पंदन होते हैं । काया-शरीर के भी स्पंदन होते हैं। इस प्रकार प्राण दस हैं । सबके अपने स्पंदन हो रहे हैं । इन्हीं के आधार पर हमारे जीवन का यह ढांचा चल रहा है।
__ आठ प्रकार के कर्म हैं। आठ प्रकार के स्पंदन हैं। उनमें मोह के स्पंदन सबसे अधिक हैं । आवेग, उत्तेजना, भय, शोक, विषाद, घृणा, विकार, काम-वासना-ये सारे मूर्छा के स्पंदन हैं, मोह के स्पंदन हैं। ये निरंतर होते रहते हैं। ये कभी विराम नहीं लेते। ये अपने-आप कभी रुकते भी नहीं । इनके आधार पर कभी सुख का अनुभव होता है, कभी दुःख का अनुभव होता है। इनमें कुछ स्पंदन ऐसे होते हैं जो सुख का अनुभव कराते हैं और कुछ स्पंदन ऐसे होते हैं जो दुःख का अनुभव कराते हैं।
___सुख-दुःख क्या है ? इसे समझना होगा। स्पंदनों के साथ मन का योग सुख है और स्पंदनों के साथ मन का योग ही दुःख है। स्पंदनों के साथ यदि मन का योग नहीं होता है तो न सुख का अनुभव होता है और न दुःख का अनुभव होता है। प्रिय स्पंदनों के साथ मन का योग होता है तो सुख और अप्रिय स्पंदनों के साथ मन का योग होता है तो दुःख । सुख-दु.ख की जो कल्पना है वह मन के योग के साथ होती है। मन को न जोड़ें। स्पंदन होते रहें, कोई बात नहीं है । न सुख होगा और न दुःख ।
स्पंदन निमित्तज हैं । प्राण के स्पंदन निमित्त से उत्पन्न होते हैं और कर्म के स्पंदन भी विपाक में निमित्त से ही आते हैं । स्पंदन के निमित्त अनेक हैं । उनमें एक निमित्त है-चिंतन । चिंतन करते हैं, स्पंदन प्रारंभ हो जाते हैं । स्मृति होती है, स्पंदन होने लग जाते हैं। एक घटना है। चार आदमी बुढ़िया के घर आए । बुढ़िया ने उन्हें छाछ पिलाई। चारों चले गए। बुढ़िया ने देखा कि छाछ के बर्तन में सर्प मरा पड़ा है। बुढ़िया ने सोचा-बेचारे चारों मर गए होंगे । कुछ वर्ष बीते । वे चारों पथिक पुनः उसी बुढ़िया के यहां ठहरे। बुढ़िया ने उन्हें आश्चर्य से देखा। पूछने पर बुढ़िया ने घटित घटना बता दी। चारों के स्मृति-कोष्ठ जाग गए। उनकी आंखों के सामने जहर मिली छाछ के पान का दृश्य उपस्थित हुआ और वे चारों उसी क्षण मर गए । उनको विष ने नहीं मारा, किन्तु विष की स्मृति ने मार डाला। वे सचमुच मर गए।
___ चिंतन से, स्मृति से, कल्पना से स्पंदन पैदा होते हैं। इनसे सुखद स्पंदन भी पैदा होते हैं और दुःखद स्पंदन भी पैदा होते हैं। भक्ति और जप
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