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प्रवचन ७ : संकलिका
● आध्यात्मिक सुख का अनुभव कराने वाले स्पंदन -
• मंत्री जप, भक्ति और श्रद्धा के द्वारा, ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा के द्वारा, परम वैराग्य के द्वारा, नासाग्र पर अनिमेष प्रेक्षा के द्वारा वे स्पंदन होते हैं । यही तेजस ( कुण्डलिनी) का जागरण है ।
मज्जा -- यही 'ग्रे मैटर' है । यही अवचेतन मन का स्तर 1 यही बिन्दु है । सूक्ष्म शरीर का इससे सम्बन्ध है |
प्राणधारा का सुषुम्ना में प्रवेश होने पर सुख ही सुख, मन शान्त, आध्यात्मिक स्पंदन प्रारम्भ । यही आत्म-रमण या आत्म- रति है । सुख-दुःख क्या है ? स्पंदन और मन या चेतना का योग ही सुख-दुःख है |
मोह के स्पंदन -
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आवेग, भय, शोक, घृणा, वासना और विषाद । • ये प्रतिपक्षी संवेदनों से निरस्त हो जाते हैं ।
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