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प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास : संयम
इसमें बुराई क्या है ? कोई बुराई नहीं है । आने का अर्थ है विपाक । जो एकत्रित है उसका विपाक होगा ही । उसे रोको मत । विपाक आएगा और चला जाएगा। रोकने का अर्थ है उसे और अधिक पुष्ट करना | विचार आते हैं, आने दें, रोकें मत । उन्हें मात्र देखते रहें । तटस्थ भाव से देखते रहें । मन से न राग आने दें और न द्वेष | देखते रहें, देखते रहें । 'यह क्रोध का विचार आ रहा है । यह वासना का विचार आ रहा है । यह लोभ का विचार आ रहा है । यह मोह का विचार आ रहा है । यह किसी की हत्या करने का, किसी को मारने का विचार आ रहा है । यह प्रतिशोध लेने का विचार आ रहा है।' इन सबको आने दें। रोकें नहीं । इन्हें देखते जाएं । इन्हें खुलकर आने दें। प्रतिरोध न करें। इन्हें तटस्थता से देखते रहें और हंसते रहें कि क्या-क्या हो रहा है । कैसा नाटक चल रहा है । यह देखने की प्रक्रिया परिवर्तन की सशक्त प्रक्रिया है । देखते-देखते अर्जित आदत में परिवर्तन आने लगता है । यह जागृति की साधना है । इसमें साधक सुषुप्त नहीं रह सकता । वह जागृत रहकर ही उभरने वाली वृत्तियों को देख पाता है ।
कुछ मनुष्य प्रश्न करते हैं कि श्वास को देखने का मूल्य ही क्या है ? श्वास भगवान् तो है नहीं कि हम उसे देखते ही रहें। यदि भगवान् को देखते तो कुछ निष्पन्न होता । श्वास को देखने का प्रयोजन ही क्या है ? हम साधनों में श्वास का आलंबन लेकर चल रहे हैं । हमने निरालंब आकाश में चलने के लिए रस्सी बांध ली । उस रस्सी पर हमें चलना है । परन्तु रस्सी पर चलने में बड़ा खतरा है । हमें पूर्ण जागृत होकर रस्सी पर चलना होगा। एक-एक पग पर पूर्ण जागृत रहना होगा । कहीं भी एक झपकी आयी कि हम नीचे गिर पड़ेंगे । श्वास को देखने की प्रक्रिया जागृत रहने की प्रक्रिया है । यह मन को जागृत रखने की प्रक्रिया है । जब मन जागृत रहेगा तब वृत्तियों को आप ठीक वैसे ही देखेंगे जैसे कि छायाचित्र को देखते हैं, चलचित्र को देखते हैं ।
उपादान तक पहुंचने का यह दूसरा प्रयोग है ।
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उपादान तक पहुंचने का तीसरा प्रयोग है - प्रतिसंलीनता । यह बहुत बड़ा विषय है । इसकी चर्चा आगे करेंगे। आज इतना ही ।
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