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किसने कहा मन चंचल है
उभरती हैं, उनकी कल्पना ही नहीं की जा सकती। अनोखी-अनोखी वृत्तियां उभरती हैं । साधक बेचैन हो उठता है। वृत्तियां न उभरें, ऐसा नहीं होता। सभी साधकों का यही अनुभव है कि साधना के मध्यकाल में वृत्तियां तीव्र होती हैं । उस समय उन पर नियन्त्रण करना आवश्यक होता है ।
___ इस युद्ध की स्थिति से निपटने के लिए अनेक साधनों का सहारा लेना पड़ता है। पहले से ही पूरी तैयारी करके चलना पड़ता है। उस तैयारी के अनेक साधन हैं :
१. श्वास को देखना। २. शरीर को देखना। ३. चैतन्य केन्द्रों को देखना । ४. अनशन करना। ५. उपवास करना। ६. कम खाना। ७. आसन करना।
ये सब तैयारी के साधन हैं जो साधक इस साधन-सामग्री को साथ लेकर चलता है वह कभी युद्ध में नहीं हारता। वह भयंकर आक्रमण और प्रहारों को सहर्ष झेल लेता है । वह कभी पीछे नहीं हटता, आगे से आगे बढ़ता चला जाता है । इसमें भी कुछ रहस्य है ।
एक वैज्ञानिक तीस वर्षों से एक अनुसंधान में लगा हुआ था। उसने प्रतिपादित किया कि जो चबाकर खाता है वह कम हिंसक होता है। बिना चबाए खाने वाला अधिक हिंसक होता है। कहां से कहां का सम्बन्ध ! कहां हिंसा और कहां दांतों से चबाना ! बड़ी विचित्र-सी बात लगती है । किन्तु उस वैज्ञानिक ने इतने प्रमाण प्रस्तुत किए हैं कि इस तथ्य को सहसा नकारा नहीं जा सकता।
___ संचित वृत्तियां निमित्तों को पाकर उभरती हैं। अगर निमित्तों को बदल दिया जाता है तो ये वृत्तियां शांत हो जाती हैं। भोजन केवल शरीर को ही पुष्ट नहीं करता, उसका प्रभाव इन्द्रियों और मन पर भी होता है । भोजन के सूक्ष्म अणु जो रस रूप में परिवर्तित होते हैं, वे इन्द्रियों, मन और वृत्तियों को प्रभावित करते हैं। भोजन का परिपाक कैसे होता है, यह महत्त्वपूर्ण बात है। चवाने का अर्थ है-उचित परिपाक के लिए प्रस्तुत करना । जितना अधिक चबाया जाएगा उतना ही अच्छा परिपाक होगा।
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