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किसने कहा मन चंचल है
जाता है। वह मन से जो कामना करता है, वह तत्काल सध जाता है । मन में भोजन का संकल्प किया और भोजन की तप्ति हो गयी। कवल-आहार की कोई जरूरत नहीं है । किन्तु यह सबको सहज प्राप्त नहीं है । इस शक्ति का विकास हर व्यक्ति कर सकता है ।
देवता सहजरूप से मनोभक्षी होते हैं। वे कवल-आहार नहीं करते । वैक्रिय शरीरधारी भी मनोभक्षी होते हैं। यह उनकी संभव शक्ति है और हर व्यक्ति के लिए संभाव्य शक्ति।
वाणी की भी संभव शक्ति होती है और संभाव्य शक्ति होती है । तीर्थकर बोलते हैं तब उनकी वाणी एक योजन तक सुनाई देती है। उनकी वाणी अनेक भाषाओं में परिणत हो जाती है। यह उनकी संभव शक्ति है। वह सहज ही उन्हें प्राप्त है । दूसरों के लिए यह संभाव्य शक्ति है।
__ वाक् वीर्य के दो रूप हैं । एक है-क्षीरास्रवलब्धि और दूसरा है-- मध्वास्रवलब्धि । इन लब्धियों से संपन्न व्यक्ति जब बोलता है तब सुनने वाले को लगता है मानो वह दूध पी रहा है, मधु चाट रहा है। शब्द इतने मीठे होते हैं। यह उस लब्धिसंपन्न व्यक्ति के लिए सहज है। हर व्यक्ति इसे प्राप्त कर सकता है, संभाव्य है सबके लिए ।
एक राजा आचार्य के पास आकर बोला-"गुरुदेव ! देवताओं की आयु बहुत लंबी होती है। क्या वे जीते-जीते नहीं अघाते ?" आचार्य ने कहा-"वे इतने सुख में जीते हैं कि उन्हें काल का बोध ही नहीं होता। काल का बोध उन्हें होता है जो कष्ट में जीवन बिताते हैं।" राजा ने कहा-"यह कैसे संभव है ? काल का बोध क्यों नहीं होता?" आचार्य क्षीरावलब्धि से संपन्न थे । उन्होंने कहा-"राजन् ! कुछ देर उपदेश तो सुन लो।" राजा उपदेश सुनने बैठा। आचार्य बोलने लगे। दो प्रहर बीत गए । राजा तन्मय होकर सुनता रहा । उपदेश के अन्त में आचार्य ने राजा से पूछा--"कितने समय से उपदेश सुन रहे हो ?” "गुरुदेव ! अभी दो क्षण ही तो हुए हैं। अभी-अभी तो आपने उपदेश शुरू किया था।' आचार्य ने कहा--"राजन् ! तुम्हें उपदेश इतना मीठा और सरल लगा कि काल का बोध ही नहीं हुआ। मुझे बोलते दो प्रहर हो गए हैं।" राजा अवाक् रह. गया। यह वाक्शक्ति का रूप है।
___ शरीर की शक्ति भी विचित्र होती है। महावीर को हम समझें । उन्होंने चार मास तक खड़े रहकर ध्यान किया। न उच्चार, न प्रस्रवण, न
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