________________
प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास : संयम
हमारे अस्तित्व के दो महास्रोत हैं-शक्ति और चेतना । चेतना के द्वारा हम बाह्य को प्रकाशित करते हैं और अपने-आप भी प्रकाशित होते हैं । शक्ति के द्वारा चेतना हो सकती है, पर उसका उपयोग नहीं हो सकता । मस्तिष्क के होने पर भी यदि प्राणशक्ति स्वस्थ नहीं है तो मस्तिष्क का कोई उपयोग नहीं हो सकता । इन्द्रिय-चेतना है, पर यदि उसके साथ प्राण ऊर्जा कायोग नहीं है तो इन्द्रिय-चेतना का कोई उपयोग नहीं हो सकता | शक्ति का स्वस्थ योग मिलने पर ही चेतना काम कर सकती है ।
शक्ति का विकास और चेतना का विकास -- दोनों साथ-साथ चलते हैं । शक्ति का विकास प्रत्याख्यान के द्वारा हो सकता है। विवेक चेतना के जागरण पर जो पहली प्रतिक्रिया होती है वह है प्रत्याख्यान । जैसे ही विवेक चेतना जागती है, हेय और उपादेय -- दोनों जान लिये जाते हैं । इस स्पष्ट ज्ञान के बाद जो हमारी प्रतिक्रिया होती है, वह है प्रत्याख्यान । प्रत्याख्यान का अर्थ है – छोड़ना । प्रत्याख्यान हो सकता है शक्ति के प्रयोग के
द्वारा ।
शक्ति का एक रूप है - संकल्प | संकल्प अर्थात् इच्छा शक्ति । दो आदमी हैं। एक बैठा है, चल रहा है । प्रश्न होता है - ऐसा क्यों ? दोनों क्यों नहीं चल रहे हैं ? दोनों क्यों नहीं बैठे हैं ? इस अन्तर के पीछे एक शक्ति जो काम कर रही है, वह है इच्छाशक्ति । प्राणी में इच्छाशक्ति होती है । वह अपनी इच्छाशक्ति के द्वारा ही किसी कार्य में प्रवृत्त होता है, कोई कार्य करता है, कोई कार्य नहीं करता । इच्छा होती है तब चलने लग जाता है । इच्छा होती है तब बैठ जाता है । इच्छा होती है तब बोलने लग जाता है । इच्छा होती है तब मौन हो जाता है । इच्छा होती है तब खाने बैठ जाता है और इच्छा होती है तब आराम करने लग जाता है । उसका सारा - काम इच्छा से प्रेरित होता है ।
दार्शनिक युग में एक प्रश्न उठा था कि वायु जीव है या नहीं ? कुछ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org