Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ११४ ]
अपुव्वकरणे कज्जविसेसपरूवणा
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* अपुत्र्वकरणस्स पढमसमए जहण्णगेण कम्मेण उवदिस्स हद - खंडगं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो, उक्कस्सेण उवदिस्स सागरोवमपुधत्तं ।
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४०. जो जीवो जहण्णट्ठिदिसंतकम्मेणागतूण दंसणमोहक्खवणाए पट्ठवगो जादो तस्सापुव्यकरणपढमसमए वट्टमाणस्स आउअवज्जाणं कम्माणं जहण्णयं हिदिखंडयं होइ । तं पुण किंपमाणमिदि आसंकाए पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो ति तपाणिसो को । एदैण पलिदोवमस्सासंखेज्जभागादिवियप्पाणं पडिसेहो कओ दट्ठव्वो । एदं च जहण्णयं ट्ठिदिखंडयं जहण्णट्ठिदिसंतकम्मपडिबद्धं कस्स होदित्ति पुच्छिदे जेण कसाया पुव्यमुवसामिदा तस्से त्ति भणामो, तदण्णत्थ पयदविसयट्ठदिसंतकम्मस्स सव्वजहण्णत्ताणुवलंभादो । उक्कस्सट्ठिदिसंतकम्मं पुण जेण कसाया पुव्वमणुवसामिदा तस्स दट्ठव्वं, पुव्विल्लादो एदस्स द्विदिसंतकम्मस्स संखेज्जगुणत्तसिद्धीए अतरमेव समत्थियत्तादो तस्सेवुक्कस्सयं द्विदिखंडयं होइ । तस्स च पमाणं सागरोवमपुधत्तमिदि णिच्छेयव्वं ।
* अपूर्वकरण के प्रथम समय में जघन्य स्थितिसत्कर्मके साथ उपस्थित हुए जीवका स्थितिकाण्डक पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण
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$ ४०. जो जीव जघन्य स्थिति सत्कर्मके साथ आकर दर्शनमोहकी क्षपणाका प्रस्थापक हुआ है, अपूर्वकरणके प्रथम समय में विद्यमान उसके आयुकर्मके अतिरिक्त शेष कर्मोंका जघन्य स्थितिकाण्डक होता है । परन्तु कितने प्रमाणवाला होता है ऐसी आशंका होनेपर वह पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण होता है इस प्रकार उसके प्रमाणका निर्देश किया । इस वचनके द्वारा पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण आदि विकल्पोंका प्रतिषेध किया गया जानना चाहिए । जघन्य स्थिति से सम्बन्ध रखनेवाला यह जघन्य स्थितिकाण्डक किसके होता है ऐसी पृच्छा होनेपर जिसने पहले कषायोंको उपशमाया है उसके होता है ऐसा हम कहते हैं, क्योंकि इसके अतिरिक्त अन्य जीवके प्रकृतमें विवक्षित स्थितिसत्कर्म सबसे जघन्य नहीं उपलब्ध होता । परन्तु उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म जिसने पहले कषायोंको उपशमाया नहीं है उसके जानना चाहिए, क्योंकि पूर्व में कहे गये उक्त जीवकी अपेक्षा इसका स्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा होता है इसका समर्थन अनन्तर पूर्व ही कर आये हैं । उसीके उत्कृष्ट स्थितिकडक होता है । और वह सागरोपमपृथक्त्वप्रमाण है ऐसा निश्चय करना चाहिए ।
विशेषार्थ — यहाँपर अपूर्वकरणके प्रथम समय में जघन्य स्थितिकाण्डक किसके होता है और उत्कृष्ट स्थितिकाण्डक किसके होता है और उनका प्रमाण कितना है इन सब बातों का खुलासा करते हुए बतलाया है कि जो जीव उपशमश्रेणिसे उतरकर दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करता है उसके अपूर्वकरणके प्रथम समय में जघन्य स्थितिसत्कर्म होनेसे जघन्य स्थितिकाण्डक होता है, जिसका प्रमाण पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण है । तथा जो जीव कषायोंको उपशमाये बिना दर्शनमोहनीयको क्षपणा करता है, उसके अपूर्वकरणके प्रथम