Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 272
________________ गाथा १२३ ] चरितमोहणीय-उवसामणाए करणकन्जणिहेसो २२९ कोडीए । एवं डिदिबंधो वि दट्ठव्यो । णवरि अंतोकोडाकोडीए सदसहस्सपुधत्तपमाणो त्ति वत्तव्वं । एवमपुव्यकरणद्धमणुपालिय तदणंतरसमए अणियट्टिकरणपविट्ठो चि जाणावणट्टमुत्तरसुत्तं * तदो से काले पढमसमयअणियही जादो। $ ७१. सुगममेदं । एवमणियट्टिकरणं पविष्टुस्स पढमसमयप्पहुडि केत्तियं पि कालं पुव्वुत्तो चेव द्विदिखंडयघादादिकिरियाकलावो, ण तत्थ णाणतमत्थि त्ति पदुप्पाएमाणो उत्तरं पबंधमाह____ * पढमसमयअणियटिकरणस्स द्विदिखंडयं पलिदोवमस्स संखेजदिभागो। ६७२. जहा अपुव्वकरणो पलिदोवमस्स संखेजदिभागायामेण द्विदिखंडयमागाएंतो आगदो एवमेसो वि पढमसमयाणियट्टिठिदिखंडयमागाएदि, ण तत्थ णाणत्तमिदि वुत्तं होइ । णवरि अपुव्वकरणपढमद्विदिखंडयप्पहुडि विसेसहीणकमेण ठिदिखंडएसु ओवट्टिजमाणेसु संखेजसहस्समेत्तीओ ठिदिखंडयगुणहाणीओ उन्लंघियूण तत्तो संखेजगुणहीणं चरिमसमयापुव्वकरणस्स द्विदिखंडयं होइ। तत्तो विसेसहीणमेदमणियट्टिकरणं पविट्ठस्स पढमट्ठिदिखंडयमिदि घेत्तव्वं । बन्धका प्रमाण भी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अन्तःकोड़ाकोड़ीके भीतर लक्षपृथक्त्वप्रमाण है ऐसा कहना चाहिए। इस प्रकार अपूर्वकरणके कालका पालनकर उसके अनन्तर समयमें अनिवृत्तिकरणमें प्रविष्ट होता है इसका ज्ञान करानेके लिये आगेके सूत्रको कहते हैं * इसके अनन्तर समयमें प्रथम समयवर्ती अनिवृत्तिकरण संयत हो जाता है । 5 ७१. यह सूत्र सुगम है । इस प्रकार अनिवृत्तिकरणमें प्रविष्ट हुए संयतके प्रथम समयसे लेकर कितने ही कालतक पूर्वोक्त ही स्थितिकाण्डक आदि क्रियाकलाप होता है, वहाँ नानापन नहीं है इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेके प्रबन्धको कहते हैं * अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयमें स्थितिकाण्डक पन्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण होता है। ६७२. जिस प्रकार अपूर्वकरणमें स्थित संयत पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण आयामवाले स्थितिकाण्डकको ग्रहण कर आया है उसी प्रकार यह भी अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयमें स्थितिकाण्डकको ग्रहण करता है, वहाँ नानापन नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इतनी विशेषता है कि अपूर्वकरणके प्रथम स्थितिकाण्डकसे लेकर विशेष हीन क्रमसे स्थितिकाण्डकोंके अपवर्तित होनेपर संख्यात हजार स्थितिकाण्डक गुणहानियोंका उल्लंघन कर उससे ( प्रथम समयके स्थितिकाण्डकसे ) अपूर्वकरणके अन्तिम समयमें संख्यातगुणा हीन स्थितिकाण्डक होता है। तथा अनिवृत्तिकरणमें प्रविष्ट हुए संयत जीवका प्रथम स्थितिकाण्डक उससे विशेष हीन होता है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए ।

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