Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 347
________________ ३०४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ चरित्तमोहणीय-उवसामणा $ २५०. सुगमं । * तदो से काले मायासंजलणस्स बंधोदया वोच्छिण्णा । $ २५१. अणुप्पादाणुच्छेदमस्सियूणेदं वृत्तं, उप्पादाणुच्छेदविवक्खाए पुव्विल्लसमए चैव तदुभयवोच्छेदविहाणोववत्तीदो। एत्तो पाए लोभसंजलणं वेदेमाणो तिविहं लोभ वसामेदुमाढवे । तत्थ मायासंजलणुच्छ्ट्ठिावलियाए त्थिबुक्कसंकमेण लोभसंजलम विवागो होदित्ति जाणावणट्ट फलमुत्तरसुत्तं * मायासंजलणस्स पढमट्ठिदीए समयूणा आवलिया सेसा तिथवुक्कसंकमेण लोभे विपचिहिदि । $ २५२. गयत्थमेदं सुत्तं । * ताधे चेव लोभसंजलणमोकड्डियूण लोभस्स पढमडिदि करेदि । ६ २५३. तक्काले चैव विदियट्ठिदीदो लोहसंजलण पदे सग्ग मोकड्डि- यूण उदयादिगुणसेटीए णिक्खिवमाणो अंतोमुहुत्तमेत्ति लोहसंजलणस्स पढमट्ठिदिं समुप्पादिय वेदेदित्ति भणिदं होदि । संपहि एदिस्से लोभसंजलणपढमट्ठिदीए दीहत्तमेत्तियं होदि त्ति जाणावणडुमुत्तरमुत्तमाह * एत्तो पाए जा लोभवेदगद्धा होदि तिस्से लोभवेदगद्धाए वेत्ति - भागा एत्तीयमेत्ती लोभस्स पढमट्ठिदी कदा | $ २५०. यह सूत्र सुगम है । * उसके एक समय बाद मायासंज्वलनके बन्ध और उदय व्युच्छिन्न होते हैं । $ २५१. अनुत्पादानुच्छेदका आश्रय लेकर यह सूत्र कहा है, क्योंकि उत्पादानुच्छेद की विवक्षा में अनन्तर पूर्व के समय में ही इन दोनोंके व्युच्छित्तिका कथन बन जाता है । यहाँसे लेकर लोभसंज्वलनका वेदन करता हुआ तीन प्रकारके लोभको उपशमानेके लिए आरम्भ करता है । वहाँ पर मायासंज्वलनकी उच्छिष्टावलिका स्तिवुकसंक्रमके द्वारा लोभसंज्वलनमें विपाक होता है इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेके सूत्रको कहते हैं * मायासंज्वलनकी प्रथम स्थितिमें जो एक समय कम एक आवलि शेष है वह स्तिकसंक्रमके द्वारा लोभसंज्वलन में विपाकको प्राप्त होगी । $ २५२. यह सूत्र गतार्थ है । * उसी समय लोभसंज्वलनका अपकर्षणकर लोभकी प्रथम स्थिति करता है । $ २५३. उसी समय द्वितीय स्थिति से लोभसंज्वलन के प्रदेशपुञ्जका अपकर्षणकर उदयादि गुणश्र णिरूपसे निक्षेप करता हुआ लोभसंज्वलन की प्रथम स्थितिको अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थापित कर वेदन करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब इस लोभसंज्वलन की प्रथम स्थितिकी लम्बाई इतनी होती है इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेके सूत्रको कहते हैं * यहाँसे लेकर जो लोभ वेदककाल है उस लोभवेदक कालके दो त्रिभाग प्रमाण लोभकी प्रथम स्थिति की ।

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