Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 349
________________ ३०६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चरित्तमोहणीय-उवसामणा अणुभागखंडयपमाणं पि पुव्वुत्तेण विहिणा अणुगंतव्वं । एवमेदेण कमेणाढविय तिविहं लोभमुवसामेमाणस्स संखेजेसु द्विदिबंधसहस्सेसु गदेसु णिरुद्धपढमहिदीए अद्धमत्तं गालिय द्विदस्स तदवत्थाए जो विसेससंभवो तप्परूवणट्ठमुवरिमो सुत्तपबंधो * तदो संखेज्जेहिं हिदिबंधसहस्सेहिं गदेहिं तिस्से लोभस्स पढमहिदीए अद्धं गदं। २५७. एत्थ 'पढमट्टिदीए अद्धं गदं' इदि वुत्ते सादिरेयमद्धं गदमिदि घेत्तव्वं । कुदो एदमवगम्मदे ? उवरिमअप्पाबहुअसुत्तादो। * तदो अद्धस्स चरिमसमए लोहसंजलणस्स हिदिबंधो दिवसपुधत्तं । ६२५८. पुव्वुत्तसंधीए लोभसंजलणस्स हिदिबंधो अंतोमुहुत्तूणमासमेत्तो होतो तत्तो कमेण परिहाइदूण एदम्हि संधिविसेसे दिवसपुधत्तमेत्तो संजादो त्ति एसो एदस्स सुत्तस्सत्थो। * सेसाणं कम्माणं हिदिबंधो वस्ससहस्सपुधत्तं । $२५९. पुव्वुत्तसंखेज्जवस्ससहस्साणं सुट्ट ओहट्टिदृण तप्पमाणेणेत्थ समवट्ठाणादो। संपहि एदम्मि चेव समए अणुभागसंतकम्मगयविसेसपरूवणट्टमुत्तरसुत्तारंभोवरणादि कर्मोंके स्थितिकाण्डक और अनुभागकाण्डकोंका प्रमाण भी पूर्वोक्त विधिसे जानना चाहिए । इस प्रकार इस क्रमसे आरम्भ करके तीन प्रकारके लोभको उपशमानेवाले जीवके संख्यात हजार स्थितिबन्धोंके व्यतीत होनेपर विवक्षित प्रथम स्थितिके अर्धभागको गलाकर स्थित होनेपर उस अवस्थामें जो विशेष सम्भव है उसका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं-- ___ * तत्पश्चात् संख्यात हजार स्थितिबन्धोंके व्यतीत होनेपर लोभकी उस प्रथम स्थितिका अर्ध भाग व्यतीत हो गया। $२५७. यहाँपर 'प्रथम स्थितिका अर्ध भाग व्यतीत हो गया' ऐसा कहनेपर 'साधिक अर्ध भाग व्यतीत हो गया ऐसा ग्रहण करना चाहिए । शंका--यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान--आगे आनेवाले अल्पबहुत्वसम्बन्धी सूत्रसे जाना जाता है। * वहाँ अर्ध भागके अन्तिम समयमें लोभ संज्वलनका स्थितिबन्ध दिवसपृथक्त्वप्रमाण होता है। $ २५८. पूर्वोक्त सन्धिके प्राप्त होनेपर लोभसंज्वलनका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त कम एक माहप्रमाण था, उससे क्रमसे घटकर इस सन्धिविशेषके प्राप्त होनेपर दिवसपृथक्त्व प्रमाण हो जाता है यह इस सूत्रका अर्थ है। * शेष कर्मोका स्थितिबन्ध सहस्र वर्षपृथक्त्वप्रमाण होता है। $ २५९. क्योंकि संख्यात हजार वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध अच्छी तरह घट कर यहाँ पर उसका अवस्थान तत्प्रमाण हो गया है। अब इसी समय अनुभाग सत्कर्मसम्बन्धी विशेषका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं

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