Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 353
________________ ३१० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चरित्तमोहणीय-उवसामणी * पढमसमए जहणियाए किट्टीए पदेसग्गं बहुअं, विदियाए पदेसग्गं विसेसहीणं । एवं जाव चरिमाए किट्टीए पदेसग्गं तं विसेसहीणं । $२६५. पढमसमए ताव ओकड्डिदसयलपदेसग्गस्सासंखेजदिभागं घेत्तण किट्टीसु णिक्खिवमाणो जहणियाए किट्टीए पदेसग्गं बहुअं देदि । तत्तो उवरिमागंतराए विदियाए किट्टीए पदेसग्गं विसेसहीणं देदि । केरियमेोण ? अणंतिमभागमेत्तेण दोगुणहाणिपडिभागिएण। एवमेदेण पडिभागेणाणंतराणंतरादो विसेसहीणं कादण णेदव्वं जाव चरिमाए किट्टीए पदेसग्गं विसेसहीणं ति । णवरि परंपरोवणिधाए वि जोइजमाणाए पढमकिट्टीए णिक्खित्तपदेसग्गादो चरिमकिट्टीए णिसित्तपदेसग्गमणंतभागहीणं चेव होदि । कुदो ? किट्टीणमद्धाणस्स एयफद्दयवग्गणाणमणंतिमभागपमाणत्तादो। पुणो चरिमकिट्टीए णिक्खित्तपदेसादो उवरि जहण्णफद्दयस्सादिवग्गणाए अणंतगुणहीणं पदेसग्गं देदि । सुत्तेणाणुवइट्ठमेदं कुदो परिच्छिजदे ? सुत्ताविरोहितंतजुत्तीदो। तं जहा-चरिमकिट्टीए णिसित्तपदेसग्गं इच्छामो त्ति तस्सोवणे ठविज्जमाणे एगमादिवग्गणं ठविय दिवड्डगुणहाणीए तम्मि गुणिदे फद्दयगदसयलदव्वं होइ । एत्तो सव्यवग्गणाहिंतो ओकडिदसयलदव्वागमण * प्रथम समयमें जघन्य कृष्टिका प्रदेशपुञ्ज बहुत है। उससे दूसरी कृष्टिमें प्रदेशपुञ्ज विशेष हीन है। इस प्रकार अन्तिम कृष्टिके प्राप्त होने तक प्रत्येक कृष्टिका प्रदेशपुञ्ज उत्तरोत्तर विशेष हीन है। ६२६५. सर्वप्रथम प्रथम समयमें अपकर्षित किये गये समस्त प्रदेशपुञ्जके असंख्यातवें भागको ग्रहणकर कृष्टियोंमें निक्षेप करता हुआ जघन्य कृष्टिमें बहुत प्रदेशपुञ्जको देता है । उससे अनन्तर उपरिम दूसरी कृष्टिमें प्रदेशपुज विशेष हीन देता है। शंका-कितना कम देता है ? समाधान—दो गुणहानिके प्रतिभागके अनुसार अनन्तवें भागप्रमाण विशेष हीन देता है। इस प्रकार इस प्रतिभागके अनुसार उत्तरोत्तर अनन्तर पूर्व कृष्टिके प्रदेशपुञ्जसे विशेष हीन करके अन्तिम कृष्टिके प्राप्त होनेतक विशेष हीन प्रदेशपुञ्ज देता है। इतनी विशेषता है कि परम्परोपनिधाकी अपेक्षासे भी गणना करनेपर प्रथम कृष्टिमें निक्षिप्त हुए प्रदेशपुञ्जसे अन्तिम कृष्टिमें निक्षिप्त प्रदेशपुञ्ज अनन्तवाँ भागहीन ही होता है, क्योंकि कृष्टियोंका आयाम एक स्पर्धककी वर्गणाओंके अनन्तवें भागप्रमाण है। पुनः अन्तिम कृष्टिमें निक्षिप्त हुए प्रदेशपुञ्जसे ऊपर जघन्य स्पर्धककी आदि वर्गणामें अनन्तगुणे हीन प्रदेशपुञ्जको देता है। शंका-सूत्रद्वारा अनुपदिष्ट इसे किस प्रमाणसे जानते हैं ? समाधान--सूत्रके अविरोधी आगमानुसार युक्तिसे जानते हैं । यथा अन्तिम कृष्टिमें निक्षिप्त हुए प्रदेशपुञ्जको लाना चाहते हैं, इसलिये उसके अपवर्तनको स्थापित करनेपर एक आदि वर्गणाको स्थापितकर डेढ़ गुणहानि द्वारा उसके गुणित करनेपर स्फर्धकगत समस्त द्रव्य होता है। आगे सर्व वर्गणाओंमेंसे अपकर्षित किये

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