Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 374
________________ गाथा १२३ ] चरित्तमोहणीय-उवसामणाए करणकजणिदेसो ३३१ ३०१. एदासिं दोण्हं सव्वघादिपयडीणमणुभागुदएण णिहालिञ्जमाणे सव्विस्से उवसंतद्धाए अवढिदवेदगो होदि । किं कारणं ? अवट्ठिदपरिणामत्तादो । ण केवलमेदासिं चेवावट्ठिदवेदगो, किंतु अण्णासि पि सव्वघादिपयडीणमुदइन्लाणमवहिदवेदगो चेव होदि त्ति जाणावणमुत्तरसुत्तारंभो * णिहा-पयलाणं पि जाव वेदगो ताव अवडिदवेदगो। ३०२. एदाओ णिहा-पयलाओ अद्धवोदयाओ, तदो एदासिं सिया वेदगो सिया ण वेदगो। जदि वेदगो, जाव वेदगो ताव अवढिदवेदगो चेव होदि अवद्विदपरिणामत्तादो त्ति भणिदं होदि । * अंतराइयस्स अवढिदवेदगो । $ ३०३. अंतराइयस्स वि पंचण्हं पयडीणमवट्ठिदवेदगो चेव होदि, अवद्विदपरिणामत्तादो । जइ वि एदासि पयडीणं खओवसमलद्धिसंभवादो छवड्डि-हाणीहिं हेट्टा उदयसंभवो तो वि एत्थेदासिमवढिदो चेव उदयपरिणामो होदि, अवट्ठिदेयवियप्पपरिणामविसए परिणामायत्ताणमेदाणमुदयस्स पयारंतरासंभवादो ति एसो एदस्स भावत्थो। ३०१. इन दोनों सवघाति प्रकृतियोंका अनुभाग-उदयकी अपेक्षा विचार करनेपर समग्र उपशान्तकालमें अवस्थित वेदक होता है। - शंका-इसका क्या कारण है ? समाधान–अवस्थित परिणाम होनेसे यह जीव उक्त कर्मोके अनुभाग-उदयका अवस्थित वेदक होता है। ___ केवल इन्हीं प्रकृतियोंका अवस्थित वेदक नहीं होता। किन्तु उदयस्वरूप जो अन्य सर्वघाति प्रकृतियाँ हैं उनका भी अवस्थित वेदक ही होता है इसका ज्ञान करानेके लिए आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं * निद्रा और प्रचलाका भी जब तक वेदक है तब तक अवस्थित वेदक होता है । ६३०२. ये निद्रा और प्रचला अध्रुव उदयवाली प्रकृतियाँ हैं, इसलिये इनका कदाचित् वेदक नहीं होता है। यदि वेदक होता है तो जब तक वेदक होता है तब तक अवस्थित वेदक ही होता है, क्योंकि वहाँपर अवस्थित परिणाम होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । * अन्तरायकर्मका अवस्थितवेदक होता है। ६३०३. अन्तरायकर्मकी भी पाँचों प्रकृतियोंका अवस्थित वेदक ही होता है, क्योंकि उसके अवस्थित परिणाम होता है । यद्यपि इन प्रकृतियोंकी क्षयोपशम लब्धि सम्भव होनेसे छह वृद्धियों और छह हानियों द्वारा नीचे उदय सम्भव है तो भी यहाँ पर इन प्रकृतियोंका अवस्थित ही उदयपरिणाम होता है, क्योंकि अवस्थित एक भेदरूप परिणामके होनेपर परिणामके आधीन इनके उदयका दूसरा प्रकार सम्भव नहीं है यह इस सूत्रका भावार्थ है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402