Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 401
________________ शुद्धि पत्र অযুক্তি शुद्धि एवं एवं 2ms rrr 2 2 सब्ब सव्व णिट्टिदे णिविदे खंडयस्साणि खंडयसहस्सणि. पुव्युत्त पुव्वुत्त संगुद्धं संछुद्धं एत्तों एत्तो दव्वं दव्वं मेत्तणापत्तो. मेत्तमणापत्तो अड फुटीकरण फुडीकरणणि दर्शनमोहक्षपणा दर्शनमोहक्षपणामें इस नामका अनुयोगद्वार पांच सूत्रगाथामोंकी समाप्त होता है। | अर्थ विभाषा समाप्त हुई। भाकषण कर अपकर्षण कर णबंसय णवूसय विहाणट्ठ विहाण चक्षुदर्शन चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन यह घटे भसं जाणं भसंखेज्जाणं पश्चात् वहाँ से समाडिदि समद्विदि कम्मंसा वनमंति कम्मसा बन्नति न बंधते हैं और न वेदे जाते बंधते हैं वेदे नहीं जाते 2 वह २१७ २१७ २२० २४९ उट २४९ २५४ २४९ ४

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