Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 364
________________ गाथा १२३ ] चरितमोहणीय - उवसामणाए करणकज्जणिद्देसो ३२१ असंखेज्जे भागे वेदयदि, सव्वाहिंतो किट्टीहिंतो पदेसग्गस्स असंखेज्जदिभाग मोकड्डियूण वेदयमाणो मज्झिमकिट्टिसरूवेण वेदेदि त्ति भणिदं होदि । संपहि एदं चैव अत्यं विसेसियूण परूवेमाणो उत्तरमुत्तमाह * जाओ अपढम-अचरिमेसु समएस अपुव्वाओ किट्टीओ कदाओ ताओ सव्वाओ पढमसमए उदिण्णाओ । ६२८४. किट्टीकरणद्धाए पढमसमयं चरिमसमयं च मोत्तण सेससमएसु जाओ अव्वाओ किट्टीओ कदाओ ताओ सव्वाओ चैव सुहुमसां पराइयस्स पढमसमए उदिष्णाओ दट्ठव्वाओ। एदं च सरिसधणियविवक्खाए भणिदं, अण्णा तासिं सव्वासिमे पढमसमणिरवसेसमुदिण्णत्तप्पसंगादो। ण च एवं ताहिंतो असंखेज्जदिभागमेत्तस्सेत्र सरिसधणियपरमाणुपुंजस्स ओकड्डणापडिभागेणुदय दंसणादो । * जाओ पढमसमये कदाओ किट्टीओ तासिमग्गग्गादो असंखेज्जदिभागं मोत्तण । २८५. पढमसमए णिव्वत्तिदाणं किट्टीणमुवरिमासंखेजदिभागं मोत्तूण सेसाओ सव्वाओ किट्टीओ पढमसमए उदिण्णाओ ति सुत्तस्थसंगहो । एदं पि सरिसधणियविवक्खाए वृत्तं, तासिं सव्वासिमेकसमयेण णिरवसे समुदय परिणामाणुवलंभादो । भागको छोड़कर शेष असंख्यात बहुभागका वेदन करता है, पुञ्जके असंख्यातवें भाग का अपकर्षणकर वेदन करता हुआ है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब इसी अर्थका विशेषरूपसे कहते हैं क्योंकि सब कृष्टियों में से प्रदेश - मध्यम कृष्टिरूपसे वेदन करता कथन करते हुए आगे के सूत्रको * अप्रथम और अचरम समयमें जो अपूर्व कृष्टियाँ की गईं वे सब प्रथम समय में उदीर्ण हो जाती हैं । ६ २८४. कृष्टिकरणके कालमेंसे प्रथम समय और अन्तिम समयको छोड़कर शेष समयोंमें जो अपूर्व कृष्टियाँ की गई वे सभी सूक्ष्मसाम्परायिकके प्रथम समय में उदीर्ण हो जाती हैं ऐसा जानना चाहिए और यह सदृश धनकी विवक्षामें कहा है, अन्यथा उन सभीका प्रथम समय में पूरी तरहसे उदीर्ण होनेका प्रसंग आता है । परन्तु ऐसा नहीं है, क्योंकि उनमेंसे असंख्यातवें भागमात्र सदृश धनवाले परमाणुपुंजका ही अपकर्षण प्रतिभागके अनुसार उदय देखा जाता है। * प्रथम समय में जो कृष्टियाँ की गईं उनके अग्राग्रमेंसे असंख्यातवें भागको छोड़कर शेष समस्त कृष्टियाँ प्रथम समय में उदीर्ण हो जाती हैं । $ २८५. प्रथम समय में जो कृष्टियाँ रची गईं उनके उपरिम असंख्यातवें भागको छोड़कर शेष सब कृष्टियाँ प्रथम समय में उदीर्ण हो जाती हैं यह भी सदृश धनकी विवक्षा में कहा है, क्योंकि उन सबका एक ४१ यह सूत्रार्थसंग्रह है । समय में पूरी तरह से

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