Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 367
________________ ३२४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ चरित्तमोहपीय उवसामणां ण केवलं किट्टीओ चैव असंखेज्जगुणाए सेढीए उवसामेदि, किंतु जे दुसमयूण दोआवलियमेत्तणवकबंधसमयपबद्धा फद्दयगदा ते वि समयं पडि असंखेज्जगुणाए सेढीए उवसामिदित्ति पदुष्पाणट्टमुत्तरमुत्तमोइण्णं * जे दोआवलियबंधा दुसमयूणा ते वि उवसामेदि । $ २८८. असंखेज्जगुणाए सेढीए ति अत्थव सेणेत्थाहियारसंबंधो कायव्वो । सुगममण्णं । * जा उदयावलिया छंडिदा सा त्थिवुक्कसंकमेण किट्टीसु विपश्ञ्चिहिदि । $ २८९, जा सा बादरसां पराइएण पुव्वमुच्छ्ट्ठिावलिया छंडिया फद्दयगदा सा एहिं किट्टिसरूवेण परिणमिय त्थिवुक्कसंक्रमेण विपच्चिहिदि ति भणिदं होदि । एवं सुमसां पराइयपढमसमए सव्वमेदं किरियाकलावं परूविय संपहि विदियादिसमसु कीओ वेदेमाण देण सरूवेण वेदेदि त्ति जाणावणट्ठमिदमाह - * विदियसमए उदिण्णापणं किट्टीणमग्गग्गादो असंखेज्जदिभागं मुचदि, हे दो अपुव्वमसंखेज्जदिपडिभागमाफुंददि, एवं जाव चरिमसमयसुहुमसांपराइयो ति । $ २९०. विदियसमए ताव पढमसमयोद्दिण्णाणं किट्टीणमग्गग्गादो सब्बुवरिमउपशमाता है किन्तु जो दो समय कम दो आवलिप्रमाण स्पर्धकगत नवक समयप्रबद्ध हैं उन्हें भी असंख्यातगुणित श्रेणिरूपसे उपशमाता है इसका कथन करनेके लिए आगेके सूत्रका अवतार हुआ है * जो दो समय कम दो आवलिप्रमाण नवक समयप्रबद्ध हैं उन्हें भी उपशमाता है । $ २८८. 'असंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे' इसका अर्थवश वहाँपर अधिकारके साथ संबंध कर लेना चाहिये । शेष कथन -सुगम है 1 * जो उदयावलि छोड़ दी गई थी वह स्तिवुक संक्रमके द्वारा कृष्टियोंमें विपाकको प्राप्त होगी । $ २८९. बादरसाम्परायिक संयतने पहले जो उच्छिष्टावलि छोड़ दी थी स्पर्धकगत वह यहाँपर कृष्टिरूपसे परिणमकर स्तिवुकसंक्रमके द्वारा विपाकको प्राप्त होगी यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इस प्रकार सूक्ष्मसाम्परायिक के प्रथम समय में इस सब क्रियाकलापका कथुनकर अब दूसरे आदि समयों में कृष्टियों का वेदन करता हुआ इस रूपसे वेदन करता है इस बातका ज्ञान करानेके इस सूत्र को कहते हैं * द्वितीय समय में उदीर्ण हुई कृष्टियों के अग्राग्रसे असंख्यातवें भाग को छोड़ता है तथा नीचेसे अपूर्व असंख्यातवें भागका स्पर्श करता है । इस प्रकार सूक्ष्मसाम्परायिक अन्तिम समय तक जानना चाहिए । $ २९०. दूसरे समय में तो प्रथम समय में उदीर्ण हुई कृष्टियों के अप्रासे अर्थात् सबसे

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