Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 363
________________ ३२० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ चरित्तमोहणीय-उवसामणा पमाणमेत्तियं होदि त्ति जाणावणमुत्तरसुत्समाह * जा पढमसमयलोभवेदगस्स पढमहिदी तिस्से पढमहिदीए इमा सुहुमसांपराइयस्स पढमट्टिदी दुभागो थोऊणाओ। ६२८२. कोहोदएणुवद्विदस्स पढमसमयलोभवेदगस्स बादरसांपराइयस्स जा पढमहिदी सव्विस्से एत्थतणलोभवेदगद्धाए सादिरेयवेत्तिभागमेत्ता तिस्से थोवूणदुभागमेत्तो इमो सुहुमसापराइयस्स पढमद्विदिविण्णासो त्ति भणिदं होदि । होतो वि सुहुमसांपराइयद्धामेत्तो चेव एत्थतणपढमट्ठिदिआयामो त्ति घेत्तव्यो। णाणावरणादीणं पुण गुणसेढिणिक्खेवो तकालभाविओ सहुमसांपराइयद्धादो विसेसाहिओ होदूण उदयावलियबाहिरे णिक्खित्तो, अपुव्वकरणपढमसमए णिक्खित्तगुणसेढिणिक्खेवस्स गलिदसेसस्स तप्पमाणेणेण्हिमवसित्तादो। एवंविहपढमहिदि कादूण सुहुमकिट्टीओ वेदेमाणो कधं वेदेदि ति आसंकाए किट्ठीणमेदेण सरूवेण वेदगो होदि ति पदुप्पायणद्वमुवरिमं पबंधमाह * पढमसमयसुहुमसांपराइओ किट्टीणमसंखेज भागे वेदयदि। . 5 २८३. पढमसमए ताव किट्टीणं हेट्ठिमोवरिमअसंखेजदिभागं मोत्तूण सेसहै। अब सूक्ष्मसाम्परायिक संयतकी इस प्रथम स्थितिका प्रमाण इतना होता है इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेके सूत्रको कहते हैं * प्रथम समयवर्ती लोभवेदककी जो प्रथम स्थिति होती है उस प्रथम स्थितिके कुछ कम दो त्रिभाग प्रमाण सूक्ष्मसाम्परायिक संयतकी यह प्रथम स्थिति होती है। २८२. क्रोधके उदयसे चढ़े हुए प्रथम समयवर्ती लोभवेदक बादर साम्परायिक संयतके यहाँके समस्त लोभवेदक कालके साधिक दो बटे तीन भागप्रमाण जो प्रथम स्थिति होती है उसका कुछ कम दो भागप्रमाण सूक्ष्मसाम्परायिक संयतके यह प्रथम स्थितिविन्यास होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। ऐसा होता हुआ भी यहाँ की प्रथम स्थितिकी रचना सूक्ष्मसाम्परायिकके कालके बराबर होती है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए। परन्तु ज्ञानावरणादिकका उस कालमें होनेवाला गुणश्रेणिनिक्षेप सूक्ष्मसाम्परायके कालसे विशेष अधिक होकर उद्यावलिके बाहर निक्षिप्त हुआ है, क्योंकि अपूर्वकरणके प्रथम समयमें निक्षिप्त हुआ गुणश्रेणिनिक्षेप गलितशेष होकर इस समय तत्प्रमाण अवशिष्ट रहता है । इस प्रकारकी प्रथम स्थितिको करके सूक्ष्म कृष्टियोंका वेदन करता हुआ किस प्रकार वेदन करता है ऐसी आशंका होनेपर कृष्टियोंका इस प्रकार वेदक होता है इस बातका कथन करनेके लिये आगेके प्रबन्धको कहते हैं * प्रथम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्यरायिक संयत कृष्टियोंके असंख्यात बहुभागका वेदन करता है। ६२८३. सर्वप्रथम प्रथम समयमें कृष्टियोंके अधस्तन और उपरिम असंख्यातवें

Loading...

Page Navigation
1 ... 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402