Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चरित्तमोहणीय-उवसामणां ___२७१. किट्टीकरणद्धाए चरिमसमयमपावेयूण अंतोमुहुत्तं हेट्ठा ओसरियूण तिस्से संखेजाणं भागोणं चरिमसमए वट्टमाणस्स तक्कालिओ लोभसंजलणस्स द्विदिबंधो पुन्वणिरुद्धदिवसपुधत्तमेत्तद्विदिबंधादो जहाकममोसरियूण अंतोमुहुत्तपमाणो संजादो त्ति युत्तं होइ।
* तिण्हं घादिकम्माणं हिदिबंधो दिवसपुधत्तं ।
$ २७२. तिण्हं घादिकम्माणं द्विदिबंधो वस्ससहस्सपुधत्तमेत्तो होतो जहाकमं संखेजगुणहाणीए ओहट्टियूण तक्काले दिवसपुधत्तमेत्तो जादो त्ति भणिदं होदि ।
* जाव किट्टीकरणद्धाए दुचरिमो हिदिबंधो ताव णामा-गोदवेवणीयाणं संखेजाणि वस्ससहस्साणि हिदिबंधो ।
$२७३. एतदुक्तं भवति-तिण्हमेदेसिमघादिकम्माणं द्विदिबंधो जाव किट्टीकरणद्धाए दुचरिमो द्विदिबंधो ताव संखेजवस्ससहस्सिओ चेव, घादिकम्माणं व अघादिकम्माणं सुट्ट द्विदिबंधोसरणासंभवादो । तम्हा णिरुद्धसमए एदेसि ठिदिबंधो णियमा संखेजवस्ससहस्समेत्तो ति । संपहि किट्टीकरणद्धाए चरिमो द्विदिबंधो किंपमाणो त्ति णिण्णयविहाणट्ठमुत्तरसुत्तावयारो
* किट्टीकरणद्धाए चरिमो हिदिबंधो लोहसंजलणस्स अंतोमुहुत्तिओ ।
२७१. कृष्टिकरणकालके अन्तिम समयको प्राप्त किये बिना वहाँसे अन्तर्मुहूर्त नीचे सरककर उस कालके संख्यात भागोंके अन्तिम समयमें विद्यमान जीवके लोभसंज्वलनका तात्कालिक स्थितिबन्ध पूर्वमें होनेवाले दिवसपृथक्त्वप्रमाण स्थितिबन्धसे यथाक्रम घटकर अन्तमुहूर्तप्रमाण हो गया यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* तीन घातिकर्मोंका स्थितिबन्ध दिवसपृथक्त्वप्रमाण होता है ।
६२७२. इससे पहले तीन घातिकर्मोंका स्थितिबन्ध सहस्रवर्षपृथक्त्वप्रमाण होता रहा जो यथाक्रम संख्यात गुणहानिके क्रमसे घटकर तत्काल दिवसपृथक्त्वप्रमाण हो गया यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* कृष्टिकरणकालके द्विचरम स्थितिबन्ध तक नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता है।
२७३. यह तात्पर्य है कि कृष्टिकरणकालके द्विचरम स्थितिबन्धके समाप्त होने तक इन तीन अघातिकर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण ही होता है, क्योंकि घातिकर्मोके स्थितिबन्धके अपसरण होनेके समान अघातिकर्मोंके स्थितिबन्धका बहुत अधिक अपसरण होना असम्भव है । इस लिए विवक्षित समय में इनका स्थितिबन्ध नियमसे संख्यात हजारवर्षप्रमाण होता है। अब कृष्टिकरणकालके भीतर होनेवाले अन्तिम स्थितिबन्धका क्या प्रमाण है इस बातका निर्णय करने के लिए आगेके सूत्रका अवतार करते हैं
* कृष्टिकरणकालमें अन्तिम स्थितिबन्ध लोभसंज्वलनका अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होता